Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग' वईकहा
॥४०॥
पियापत्तीए चिंता
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न य किर अलियं लिहियं एवं किर वत्तपुव्वयं सव्वं । पुच्छंतस्स च महं दासी दाहीय पडिवयणं ।। ११ ।। एयं निस्सम्म वयणं पियस्स पप्फुल्लपउमसंकासं | धठुसं व पहढे सरूवपसुयं जायं ॥१२(१)।। भणियं च णेण तत्थ य अत्थि हु मे पाविय| यब्वे आसा । सा एसा चक्कवाई आयाया सेट्ठिणो धूया ॥ १३ ॥ कह मण्णे कायव्वं अत्थपडित्थंभगविरसेट्ठी। जं पडिसेहइ वरए सव्वे इंते कुमारीए ॥ १४ ॥ इणमो य कलुणतरगं जीसे आलोयणं न संपडइ। नट्ठा लाडल्ला वा अउव्वदट्ठव्वा दद्वव्या ।।१५।। एक्केण तत्थ भणियं दिवा नाया तहि पउत्ती से । संतस्स स्थि उवाओ उववत्ती होहि क्खामणे॥१६॥ नत्थि य कोई दोसो सेट्टिकण्णाकरण उवगंतुं । जाएमो किर कण्णा होही साहारणी लोए॥१७॥ जइ वि न दाही सेट्ठी तो अम्ह बला वि तत्थ गंतूणं । तुज्झ पियकारणत्ता चोरा होऊण हरिहामो ॥ १८ ॥ तो भणइ एव भणिए बहुपुरिसपरंपरागयपरूढं । कुलसीलपब्वयगुणं न हु तीए कए विराहेह ॥१९।। जइ गहवती न दाही अम्हाणं कहयं व गेहसारेणं । मोणेण परिव्वायं कहे न य परिसका हं ॥२०॥ परिवारेऊण जणं नियप्परं मंदिरं पयट्टवित्ति। कुलपव्ययजाणणकारणेण अहयं पि गच्छामि ॥ २१ ॥ तत्थ य गंगमुदारं भूमिगयविमाणपुंडरीयसमं । पासायवडेंसयवरं सवयंसो सो अइसी य ।। २२ ॥ तस्स पिउमाइयगंति नामं च कमेण सुट्ठ नाऊण । निप्फण्णसासणाहं तत्तो तुरियं पडिनियत्ता ॥२३॥ जायं चरित्तपरन्तदोसनट्टगहतारनरक्खत्ता। अवंगयसोसअवचियकुसुमं पिव तलायं ॥ २४ ॥ उइय(ओ) बंधुवजीवयजासुमणो कुसुमकेसुयसवण्णो । सूरो वण्णो मूरो वयणतुरंगो परियं को जीवलोयस्स ॥२५|| अहयं च इहं पत्ता पियवयणनिवेदणुस्सुया तुझं । सुरेण कणइयाओ य सुयणु! चत्तारि विदिसासु ॥२६ ॥
१ अ० पसुह० । २ अ० गुंग । ३ अ० विदिसाओ।
बा.के. सा
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