Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 62
________________ सं० तरंग वई कहा ॥ ३६ ॥ Jain Education तुरमाणसा वट्टा । सावि (मि)णि अविणयपिण्डा छलिये छइल्ला जुयाण || ४७ (१) । पति पाउसमेहा नदीए चउयहिमंति तीण | विउलजलवेगा दीसंति । पुरिपत्ता जणवेगा रायमगंमि || ४८ || पेच्छंति सुहदीहा मडहा पुण उष्फिडंति दठ्ठे ति जे | जणनिवहा पेल्लिया आरसंति धूला विसे (से) णं ॥ ४९ ॥ रचिक्खयं कहता चैव मज्झगयज्झामवासणसिहागा। उच्चत्तवत्तिनेहा जोयगसच्छहा दीवा || ५० || जह जह परिगलइ निसा तह तह निद्दाकलंकियच्छीओ । पेच्छइ जणो वमरिओ पविश्लपुरिसो पडो जाओ ॥५१॥ तत्थ जणं पेच्छंती अ० मवि दीवं पडिजमणविलक्खं । अच्छामि तुज्झ सामिणि ! सब्बहुमाणो य ।। ५२ (१) । एयंमि | देसकाले अणुकूलवस बंदमज्झगओ । कोइ तरुणो सुरूवो आगच्छइ पट्टगं दटुं ॥ ५३ ॥ इंदकुंमपीणपट्ठियसंविष्पसत्थो कुम्मोवमाणमिउचलणो । अरविंदचंद कदम पमत्थ जंघाविरोरूओ ॥ ५४ ॥ कणयसिलायलसमतल विमालमं मलविभ (भिन्न पिवच्छो । भुयगवइभोगदीहरपीवरथिराहुसंघाओ ॥ ५५ ॥ सो बीय चंदभूओ अड ( मित्त) यणत्रयणकुमुए वि बोहिंतो । चंदाइरेगपियदसपण मुहपुण्णचंदे || ५६ || सो निययरूवजोव्वणलायनपीणपीवर सिरिओ । सुरयारंभनिमित्तं पत्थिञ्जइ तत्थ तरुणीहिं ॥ ५७ ॥ सातस्थ नत्थि जुवई मणं (मि) पविट्ठो न होज सो जीसे । सारइयरयणि "चिंतित्ति वितिमिरसमत्तचंदाणणो ॥ ५८ (१) तरुणो दवेसु आसि णो किरतेयस्सी ताण होज । एक्कयरो इह मो त्ति इमो वणिजात बहुजाण ( जणा ) णं ।। ५९ ।। सो पट्टगं उबगओ पेच्छइ कमपिच्छियच्व कसरीरो । तं चित्तकम्मकरणं पसंसमणो इमं भणइ ।। ६० ।। किह मुटु निण्णपत्थिय आसंमाचत्त वितरथुमिय । जलाउ धोयधवलपुलिणा समुहकंता इहं लिहिया ॥ ६१ ॥ सुठु कया पउमसरा बहलमकरंदपउमत्रए (ण) किण्हा दारुणरुक्खा य १ अ० छद्दल्ल० | २ अ० हिमतिं । ३ दीवपडियम्गण मिसेणं । ४ आणाए विहियबहुमाणाए । ५ अ० चितिमि । For Private & Personal Use Only ॥ ३६ elainelibrary.org

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