Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंगबईकहा |
| समावचलमिउहियो अपणो अणुभवित्ता। पडिसंभावियदक्खो दट्टण इमंगच्छिदिइ मुच्छं ।।१८आवडियसोगहियो किलिग्णनयणो य होहिई सत्थो। तत्ताणुगमणतुरिओ पुच्छिही इमस्स कत्तारं। ९९॥ परलोयविप्पणहूँ इमं दट्टण महं हिययनाहं । जाणाहि चक्कवायं तं माणुसजाइमायायं ।।२००॥ तं नाम वि गुणवण्णरूववेसाईहिं सुपरिण्णायं । काऊण मजा कल्लं साहसु जह ते अहं जीई(यं) ॥१॥ होही मे तेण समं वयंसि! तो हिययसोगनिद्ववणो । सुरयरइसंपोगो आसंगी कामभोगाणं ॥२॥ जइन वि हत्थिहिरि सही! तं नाई मज्झ मंदपुण्णाए। जिणमत्थवाहपहयं तो मोक्खपहं गहिच्छा(स्सा)मि ॥ ३॥ सुटु विहीहं कालं निरन्थयं तम्म जीविय होइ । जं च पियविप्पओगे जंच विणा धम्मचरणेणं ॥४॥ पियपमसमागमउम्सुयाए अप्पाहिया मए एव । परिणि ! सा सारसिया पडयं घेत्तूण गन्ती ।।५।। रंमि य अत्यमिए तिमिरकलं किजमाणसामाए । तत्थ य तं वेलमई पोसहसालं गया परिणि ! ॥६॥ अम्मापिऊहिं समं अरहते सुविहिए य नमिऊणं। देसियचाउम्मासियपडिमणय पडिकम्मित्ता ॥ ॥ ७॥ भूमिसयणा(ण)निमण्णा य मज्झ सयणस्स पामओ परिणि ।। जिणवयवाओ वित्तं दिवोसहिदेवरुखचिचंइयं (१) 1८|| गयणतलविचरमइयं तुंगरिहरं गिरिरम्मं ॥ ९(१) सुमिणमि किर गया हं तस्स य पवरसिहरं समारूढा । वत्थघ पडि| बुद्धाई दाही किं मे फलं सुमिणी ॥ १०॥ तो भणइ तत्थ ताओ बह दिलै सुमिणसत्थंमि । धण्णो मंगलो पुद्विदो य एसोय ते सुमिणो ॥११(१)। लाभालाभं दुक्खं सुहं च सरणं च जीवियं जंया। उफुसइ अंतरप्पा सुमिणे नरनारिपत्थस्म ॥ १२ ॥ आमिसं मच्छा अच्छेय सहिरो य वणो। रुंदाणि कंदियाणि य लिचो जोयविद्धा॥१३(१)। गयवसहभवणपबयखीर
१ संदिष्टा । २ दैवसिकेति।
सुमिणसरूवं
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