Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग-1 वईकहा
कोमुईमहोसवो
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तत्थ ॥ ६४ ॥ जणो कुणइ विहिनिप्पकंप दियभोयविमाणसामाणं ॥६५(१)।। कोइण्णिमदिवसो जे आओ परिणी कामेण । संपत्तो धम्मस्स कारवणओ दियजणदोगच्चभासणओ ॥६६(१)। अम्मापितीहि सहिया चाउम्मासाइयारसोहणयं । खमाणं पडिकमणं पारणं च अहयं पियेच्छीयं ।।३७(१)।। हम्मियतलउलोयणगया य पुव्यावरणशकालंमि। पलोएमि पुरवरि सग्गविमाणोवमं | सिरियं ।।६८।। पेच्छामि दुधवले विण्णाणियसुकयचित्तियक्खंभे । गगणतलमगुलिहिने विमाणपडिरूबए भवणे ॥६९॥ वरभवणपडिदारट्टियां य कणयमयभरियभिंगारा । घोसंति दाणवइणं वरवरियं दाणकयसद्धा ॥७०॥ कणगकण्णागोलक्खदूमभूमी किमिच्छगपयाणो । सयणासणजाणाणि य असणाणि य जणो तहिं देह ।। ७१ ॥ ताओ असाए मम चेइयसकारणं करेइ जणो। विविहगुणजोगजुत्तेसु देइ सासु दाणाई ।। ७२ ॥ नवकोडीपरिसुद्धं उग्गमदोसेहिं दमहिं विमुक्कं । उप्पायणदोसेहिं च सोलसहि वि विवजियं च ।। ७३ ॥ तं वत्थपाणभोयणसयणासणलेणभायणादीयं । देमो अहियं दाणं उवग्गहकर सुविहियाणं ।। ७४ ।। | जिणवरघरेसु य पुणो नाणामणिकणयरयणरुप्पाणं । कुणिमोपवादं परस्स लोयमह फलं परिणि ! ।।७५।। दिण्णस्स नस्थि नासो |10/ दाणस्स सुभासुभस्स सव्वत्थ । होइ सुभे पुण पुण्णं होइ अपुण्णं च असुभंमि ॥७६।। विविहगुणजोगजुत्तेसु विउलतयसंजमो य | ए(ते)सु । दिणं फायदाणं सद्धासकारविणएहिं ।।७७(१)। तं सेयं विउलफलं पसवह तत्तो निरामयं च पुणो। सुकुलंमि समुप्पत्ति माणुसभवं सोभणं कुणइ ।। ७८ ॥ एएण कारणेणं देमो तवनियमदंसणधराणं । पत्तमि हवइ पत्तदाणं संसारमोक्खकरं ॥७९॥ रायावगारितक्करवितवरणकारिपारदारीसु । होइ पुण अणिट्ठफलं फायदाणं पि जं किं चि ।। ८० ॥ अणुकंपाणा(ए) निमित्त बहुयाणं तत्थुवत्थियाणं। समणमाहणकिवि(व)णवणीमगसयाणं दिण्णदाणाई ।।८१।। दरणुचरनियमबहुलो विकिट्ठखवणोप- IN॥ २९॥
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