Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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DIL
सं० तरंगवईकहा
रायमग्गे
चित्तपरउवणं
वासदाणरुई। अइरेगधम्मसीलो कोमुईदिवसे ऊण (जणो) आसि ॥८२।। एव य पेच्छामि अहं नाणवत्थंतरे पुरखरीए । संसित्तरस्सिजालो सूरो य समोत्थरइ अत्थं ॥ ८३ ॥ पुव्वदिसापियकामिणिपरिभोगकिलंतपंडुरच्छाओ। अवरदिसाविलयाए निवडेइ वच्छस्थले मरो ।। ८४ ॥ नहयलहिंडणसंतो निम्मलतवणिजरेन्ज(१)भूयाहिं । उयरह ब्व भूमितलं सूरो निययाहिं रस्सीहिं ।। ८५॥ सुरंभि य अत्थमिए तिमिस्कलं किजमाणसामाए । पडिवण्णो जियलोओ सम्बो वि य सामभावेणं ।।८६!| अम्हं पि पडिहारंमि रंगपदेसो कओ अणण्णमयो(ग्गो)। भवणकयकण्णमूरो केऊरो रायमग्गस्स ।। ८७ ।। तस्से(स्स) य एक्कदेसंमि उडिओ बेहयापरिक्खित्तो । कंबलरयणवियाणो सो मज्झ पट्टओ परिणि ! ॥८८॥ तत्थ उबयारकारी विस्सासनिही सिणेहभायणं मे । पिययममग्गणपणिही चित्तपदे चेडिया टविया ।।८९|| महुरपडिपुण्णपत्थुयसाइसयारसियवयणभावण्णू । घरिणि ! मारसिया सा भणिया य मए इमं वयणं ॥९०|| आयारिंगियभावेहि जाणसे तं परस्स हिययगयं ! मह जीविय व्व पत्थेहि य पत्थं तेइसं होउ ॥११॥ जइ होही आयाओ पिओ महं सो इह पुरवरीए । दट्टण ते पडमिणं सरिही पोराणियं जाई ॥१२॥ जं जीए सह पियाए जत्थ णुभूयं सुहं च दुक्खं च । तं तीए विप्पओगे दट्टण(णु)कंठिओ होइ ।। ९३ । सूएइ अछिरागो जं पिया य मम प्पियं च लोयंमि । पुरिसस्स अणुनिव्वरियं हिययाकू(य) निगूढं पि ॥९४॥ रुदस्स खरा दिट्ठी विसालधवला (य) पसण्णचित्तस्स । वियलियस्स सनियत्ता मज्झस्था य वीयगयस्स ॥९५|| परवसणदरिसणेण विसाणुकोसोजणो हवा दीणो। अणुभूयपच्चक्खो विहडिओ भोगसल्लेणा ॥९६।। इणमो लोए वि सूइ पोराणियं संभरेतु कीर जाई । मुच्छंxxx सुट्ठ वि जो दारुणो होइ ॥९७॥ सो पुण
१ अ० पोराणि ।
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॥ ३२ ॥
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