Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 55
________________ सं• तरंग वईकहा ॥२९॥ आग(गंतु)ओ जरओ ॥३३।। एतसिं एकयरं अहयं जं च लक्खगं न पेक्खामि । सस्था हु होह तुझे सत्यमरीरा इमा कण्णा ॥३४॥ जाणखोभेण धृया उबवणपरिहिं कण्णा किलं जाया । जाण(ह) जरु ति बाला परिस्सममिमं सरीरस्स ।।३५ ।। अहवा चित्तवियारो कोइ एयाए सोगभरजणिओ। तेणुधिग्गा बाला लक्खिाइ नण्णहा एमा ॥३६।। इय भाणिऊग य तर्हि अम्मं तायं च हेउजुत्तीहि । कयमम्माणो भवणाओनीइ विसजिओ वेजो॥३७॥ अहयं पि तत्थ दुहिया सोगभरत चहिययदुक्खत्वा । जेमाविण ससव अभ्माए वरहकालंमि ॥३८॥ मजणजमणमंडणपमोयसंभोयवइयरं विसेसे । साहति य विलयाओ उजाणाओ नियत्ताओ 1३९॥ माय(र)तरंगपरंगियतलंमि मयणमि अमरणाए । निद्दावुउच्छीए किच्छेण अइच्छिया रत्ती ॥४०॥ पूरिससया किर कल्लं | ममं वरंउं उपढिया तायं । जे मयणवाणविद्धा दट्टण ममं गुरू तेसि ।।४१॥ ते य किर अमरिमसे सीलध्धयनियमपोसहगुणेहिं । ललिया वि अच्छइत्ता पडिसिद्धा सेद्विणी ! सब्वे ॥४२॥ तस्म कहागुण किनणपमंगपरिवत्तिओ पुगो बहुमो। अच्छीसु उत्तरिजइ | पाणियरूवो महं सो उ ।। ४३ ॥ धणियमणुसंभरंतीए मज्झ तं पुबदेहसंबंध । सा कुद्धाए रुट्ठा भायणमद्धा परद्धामो।। ४४॥ | मजामि पसाहेमि य अकारं मावि संवतं परिणि । गुरुयणपरियणचित्तपरिरक्खणत्था दुहट्टामि ॥४५॥ खणमवि न हु जीवेजा तेण विणा तस्स लस(१) परिहीणा । जीवियकल्लोला मे मणोरहमया जइ न होज ।। ४६ ।। बाहइ इमं उउचंदो चम्मसहकंडोपकमाद्दि पडणगे। सुहियजणनिश्करो सत्तछयगं "वियवाओ॥४७। तिमिरपडिमामयागं खणमवि मयणसरल्लिगायाणं । नवपमिता(वा)इउ जो आवाए वंदप्पमाणाणं ।। ४८ ॥ कुसुमवणअमय वुढा घेत्तरघट्ठी पउएसपरिखुट्ठी। तह सीयला वि जोण्डा उण्डा १ कामाद्विडण उ । २ अ. विउचाउ । ३ मंदर ! CODescecome2008 For Private & Personal Use Only Linelibrary.org Jain Education

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