Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
वई कहा ।। १८ ।।
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उमविला सग्गहत्थेहिं ॥ ५८ ॥ दपियमुहुरे कुररे रंगियन्त्रयवावडाओ आडिओ । धयरट्ठे य एहट्ठे एणुरय सोदरपासं ॥५९ (१) । रेहते पउमाई छप्पयवाहेजमाणमज्झाई । तवणिजभायणाणिव तत्थ महानीलमज्झाई ।। ६० ।। खोमपडघवल पिण्डलियसच्छहो पुलिणसंटियस्स | सरयजीयगुणजायसे सरट्टहासे तहिं हंसे || ६१ ॥ निययपओहरकुंकुमविचिनरूवे य पयआयंत्रे | पियविप्प - ओगकाए य चक्कया (वा) ए पलोएमि ।। ६२ ।। सोहंति चकवाया पोमिणिपत्तसु संठिया के । कारेण कुमुम नियरे व हरियमणिकुट्टिमेडिया ||६३ || ईसारोसविरहिए सहयरि (री) संजोगरायरत्ते य । चक्कायए त्थ घरिणि । मणोसिला पिंजरे पि (पे ) च्छं ॥६४॥ | | सहं परियाहिं समग्गे पउमिणिपतंतरेसु रममाणे । हरियमणिकोट्टिम पलोट्टरयणकलसोत्रमसिरिए || ६५ || तेसु सरमंडलेसु रगइय दिट्टिमाणाय मे अहियं गोरे सुरोयणा पिंजरेसु चक्कायएसु तर्हि ||६६ (१) || दट्ठूण वच्चवेविषतेहिं चकाए तहिं धरिणि ।। सरिऊण पुव्वजाई सोएण मुच्छिया घाडिया ।। ६७ (१) । पव्वारा पायसति सोयरुक्खंत मज्झ हिययाइ । माणस दुक्ख पयासं बाहलं पभुती पस्सामि ||६८ || चेडिया में रोयंतिं मिसिणिपत्तगहिएण उयण । हिययनागं ? अंपूणि य मे य पुंछंती ||३९|| उद्देऊण य तत्तो गयासि पउमसरसणिहिं घरिणि ।। नवनीलपत्तपउमिणिनिउरुबनिभं कबलिसण्डं ॥ ७० ॥ तत्थ य निम्मलगम (य)णतलं सुमामले सिलावट्टे । महसा पट्टियंसु सोयविहरू निवेसेमि ।। ७१ ।। तो भगड़ चेडिया में सामिणि! किं तेण सुट्ट पैरिजिणं | अहवा परिस्समो ते किं वा केणाचि दासि || १२|| अंगि य मे पुंछह मुयइ य अंभूणि मज्श नेहेण । पुच्छड़ | मुच्छा य इमा केण उवाएण उ आसि ||७३ || साहह मे भूपत्थं जाहे कीरउ लहुं पडियारो । कालव्यएग मा होज सरीरव्यओ १ अ० सुं रेगइय । २ अजिणं ।
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तरंगवईए चकवाय
दंसणेण
मुच्छा, जाईसरणं च
॥ १८ ॥
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