Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 49
________________ रा सं० तरंग- कण्डेण कडीमाए विद्धो समए कय तस्स ॥ ३९॥ गाढप्पहारा वदणविमोहिओ नगमणचेट्ठो उ । उदगंमि मुक्तपक्खा हय- वाहेण वईकहा INणसमं महं पडिओ ॥ ४० ॥ दट्टण सस्सल्लं तं पढमिल्लुपमणुइएण दुक्खेण । सागर रमवायंती अहमवि पडिमुच्छिया पडियापमाआओ ॥ २३ ॥ ॥४१॥ पञ्चागया मुहुत्तेण कहवि सोगाउला विलवमाणा । वाहभरपूरियच्छी अच्छामि पियं उवेक्खंती ॥४२॥ कडिभायलग्ग चक्कवाओ कण्डविच्छारियसुक्कपडियपक्खउडं । वायपणोल्लियरुग्गं पउममिव समालयं पडियं ॥४३ ।। लक्खाए संपुण्णं पिव जलउल्लय हओ चकवाईए कणयकलसयं । पस्सामि य पडणोलियसामागलियलोहियं साह ॥४४(१)। चंदणरसपरिसितं असोयपुष्फोवयारनियक्खं । पस्सामि य सोगो निययलोहियकुहियसरीरे सहयरं तं ॥ ४५(१) । पडिओ वि रेहए सो जलपरंतगिकिंसुयसुवण्णो। पत्थियणन्त परंगिउ व मूरो नित्तुडत्तो बीहेमि य ।। ४६ ।। तं कंडं तुण्डेण कड़ियं पिययमस्स सल्लंमि । हद्विय इसह वियणदोमा मरेन्जन्ति ।। ४७(१) ।। तअंसु दुदिए स्थिय (?) अवयासेऊण पक्खहत्थेहि। हा हा कंत! भणंती सुहणलापमिसे समुही ॥४८॥ वियणवियासियतुण्डं परियत्तच्छं निसट्ठसव्वंग। पस्सामि तं पिययम कण्डद्दावियप्पाणम ॥ ४९(१) ॥ तमहं सकजसंमृढयाए तेण य सहावपेम्मेण । पीइपरंपरगाढं मयं पि जियइ त्ति मण्णेमि ॥५०॥ नाऊण तं विवण्णं सहस्सागइदुस्सहेण सोएण । पम्मुच्छिया विसण्णा कहेव्विएहिडि लद्धसष्णा या ॥५१॥ लुंचामि अग्गपक्खे नियए तुंडेण दुक्खसंतत्ता । तस्स य जाममि पक्खे पक्खहियतं समवगृह(द)। ॥५२॥ उड्डेन्ती उल्लेती तं च मयं सव्वओ अणुपंडेती । सहि ! हिययविलवणाई इमाणि कलुणाणि सोयामि ॥५३॥ परिसिरि|विणासिणा निग्धिणेण हा केण एव से भिन्नो । सयेरसहिलातिलओ चक्कायमच्छइमो इफुसिउ ॥ ५४॥ महिलासोक्खाविषयणं १ अ० इमह। 0 ॥ २३ ॥ टORDCeo Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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