Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 50
________________ वईकहा ॥२४॥ | सोगुस्सेहकरणअणावेक्खं । वेहत्थं(ब्ब) केण महं सीमारहियं इमं दिणं ॥५५॥ [तुह नाह ! विप्पओगुद्विएण अणुसोहइ व्व धूमेण । चिन्तापसंगजाल(ले)ण सो अग्गिणा डझं ॥५६॥ तुह दंसणपरिचत्ता पउमसरेस पि स्यं न लभामि । मिसिणीपत्तरियं रूवमिणं ते अपस्संती ॥५७ ।। तत्थ वि वणंतरग जइ मे दिट्ठि विज्झयतरं माणन्तो। मिसिणीपर्यंतरिओ देसंतरिओ (अ)ज मे | आसि ॥५८(१)। किं पुण देहच्चरि मज्म अदंसणं तुमे पत्ते । पियविप्पयोगमईय होइ उ निरंतरं दुक्खं ॥५९।। अह एइ सो वण- यरो तं विद्धं दट्टण सहयरं मज्झ । हाह ति करेमाणो तंमि गयवरे परिमियंतो॥६०॥ हत्थे वि निधुणंतो सो वाहो अइसोयसंवाहो । तं आगओ य पदेसं जत्थ मओ सो पिययमो ॥६१॥ पियजीवियनिकालं त(तं) महं कालमिव बीहणयरूवं । दळूण भयउधिग्गा आया सझं ति उड्डीण्णा । ६२॥ तो तेण चक्कवाओ गहिओ कंडं च उद्धियं तत्थ । पुलिणंमि य निक्खित्तो मउत्ति अणुकंपमाणेण ।। ६३ ॥ निक्खिवि जण(खणं) पिययम ससिकरधवलंमि पुलिणमझमि । तो मग्गिउं पयत्तो कड़े नियडे वर. नदीणं ॥६४॥ खणंतरेण सो एइ वणयरो दारुए गहेऊणं । तेणंतरेण अहमवि पियस्स पासं समल्लीणा ॥६५॥ हा नाह! अप-18 च्छिमं दंसणयं न इमं ति विलवामि । अन्ज महुत्तेण होहिसि जह दुल्लहो नाह तो तं दवस्स ॥६६(१)।। सो एइ वणयरो दारुए गहेऊणं मज्झ पियस्स समीवं तो (अहं) पुणो ज्झत्ति उड्डीणा॥ ६७ ॥ दट्टण दारुमती दारुयहत्थं तयं विचिंतेमि । अरहइ एस हयासो स्था पउलेहिइ पियं मा मे ॥ ६८(१) ॥ एवं विचिंतयंती हियएण बहुणि दुक्खसंतत्ता। पक्खे वि निधुणंती पिययमउवरिं परिभमामि । ६९।। तेण पच्छाइयो सो तेहिं पिययमो दारुएहिं सव्वेहिं । धणुयं च मकड दोदियं च पासे ठवेऊणं ॥७०॥ १ अ० विसयंतर० । २ अ० चरिय। ३१० उपउले०। ४ दृतिः, चर्मनिष्पन्नभाजनविशेषः । peaceacepoor ॥२४॥ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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