Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
View full book text
________________
सं० तरंग
कहा
।। २५ ।।
Jain Educati
सरसंघणजोगेण उवडिओ अरणिसंभवो अग्गी । सग्गोएत्ति संसग्गे घोसेमाणेण वाए ( है ) || ७१ ।। दहूण तेयं अरिंग सधूमं जालुञ्जलं पियस्सुवरिं । अइरेगं (ग) तरं वैणवणदवेण सोएण 'उडियाहं ॥ ७२ ॥ अत्तागं अत्ताणं कथंत विउत्ता दुक्ख संतता । रोयामि विलवमाणी हियएण पिर्य इमं वेत्ती || ७३ || सरसभिलवाविवपिणं तलायजल हिएवाणा समुइउतं भरणमणं अणुइयमिणं किह सहिहिसि दारुणअरिंग ||७४ || वाउवलवचलाणल्लि पजोलामांसालुञ्जलेण अणलेण | कंत ! तुमे उज्झन्ते डज्झति मज्झ अंगाई ॥७५॥ तुट्ठो होउ कयंतो जणस्स सुहदुक्खतत्तितलिच्छो। जेण पियसंपओगो काऊण विहाडिओ मज्झं || ७६ || लोहमयं मे हिययं अरहर दुक्खस्स भायणं मण्णे । जं तुज्झ इमं वसणं दट्ट्ण न कुट्टयंती हा ॥ ७७ ( ? ) || सेउ (यं) हुतं पि य पास गयाए वि स हिउं अगिंग ! न य मे वरं विसहिउं इडविओगुट्ठियं दुक्खं ॥ ७८ ॥ एवं विलवंतीए महिलत्तणसाहसेग मे जाया। सोगाय (इ) रेगर रिपेल्लिया परियन्त्रए बुद्धी ।। ७९ ( १ ) || अवयरिऊण य तो हं पिरंगसंगतीयलअरिंग । हियएणं पुत्रगया साहं पच्छा सरीरेणं ||८०|| तो पियसंगरिंग नियकंठकुंकुमसवण्णं । अइवरयामि समास सोया असोयर्गुत्थमहु ? || ८१ (१) || परिव्वा गुरुगुरुस्सदिंतेण अग्गिणा कणगपिंगलसिहेण । उज्झतं पि सरीरं पियदुक्खत्ता न वेदेमि || ८२ ॥ तत्थ वि पिएण समयं सारसिए ! निहणमुवगाए य । सोयग्गिजालसंदीविएण ते अग्गिणा दड़ा || ८३ ॥ एवं साहंतीए पिययममरणं च अपणो तह य । दुक्खेणुप्पण्णं घरिणि ! अहं मुच्छिया घडिया || ८४ ॥ पच्छागयपाणा पुणो 'संखुहिअमणहियया हि सणिय पवरे घाउहर बेमि १. अ० उडविओो । २ अ० ससहो । ३ अ० वणवण० । ४ अ० तविया हूं। ५ फुट्टियंति। ६ अ० गुंजं । ७ अ विखु
ational
For Private & Personal Use Only
चकवायरस अग्गि
सकारो
चकवाईए अणु मरणं
।। २५ ।।
jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130