Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंगवईकहा ॥२०॥
पुवचकवाईभवकहारंभो
Oceae
उक्ट्ठा पञ्चागयदुक्खमिया न साहेमि ॥ ९० ॥ तं सुणसु अविसण्णा मोहेहिसि अविमामा असीसन्न । पियविष्पओगकलुणं सुह| दुक्खपरंपरं सव्वं ॥११॥ सोयव्यय होहिलिणीए तीए य एसावविठ्ठतुट्ठाए। इणमो गलंतनयणा सोगविसण्णा परिकहेमि ।।१२॥ अस्थि बहुयासन्निचिओ ववगयपरपक्खचोरदुभिक्खो अंगो नाम जणवओ वयंसओ मज्झ देसस्स ॥९३॥ सा जस्स चंपवारो | नयररम्मवणसंडमंडिउजाणा(णो) । अणलिय ऐगपुरिसा पुरवरगुणसंपया चंपा ॥९॥ तत्थ बहुगामजणवया नगरोभयभडसमाउला रम्मा । अंगेसु पिच्छल 'पिउणो विहंगसंघाकुला गंगा ॥ ९५ ॥ कार्यवकुं(ड)ला हंसमेहला चकवायथणजुयला। वच्चइ सायरघरिणी फेणाए रागुत्तिपायवरा ॥९६॥ वगहस्थिमत्तदंतप्पहरतडपायकरिकूला । वणमहिसवग्धदीवियतरच्छकुलसंकुलुद्देसा ॥९७|| चकाई जमलतहाई जत्थ आपककलमकविलाई । साहति जमलजयलिय पिएकमेकाणुरत्ताई ॥९८॥ जत्थ वयरटुसारससरहकार्यबहंसकुररकुला। अण्ण (गणे) सउणसंघा रमंति सच्छंद वीसत्था ।। ९९ । तत्थ सहि ! चकवाई अणंतरभवे अहं इओ आसि । कप्पुरभंगकंपेल्लसरसनिहिपिंजरसरीरा ॥ ३०० ॥ तत्थ य माणुसजाई मरामि ततो अणंतरं पत्ता। जाइगयमाणसुहसंपयाहि रत्ता सउणभावे ॥ १॥ नवरि य एम सविसेसा संसारे होई सब्बजोणीसु । जाया मरन्ति जीवा संपयसुहमोहिया सत्ता ॥२॥ सच्छंद सुहपयारे तत्थ य सच्छंदमाहियवंमि । गाढा आसि रयाहं वयंसि! चकायमामि ॥ ३॥ मयाणवि जीवलोए चिंतिअंतो न तारिसो अस्थि । रागो विलीयराहेउ जारिपओ चकवायाणं ॥४। तत्य य अरुयसीमो दरवट्टलसुयचकलसरीरो। आसी य चक्कवाओ गंगागमणाय परिहत्थो । ॥ अणुहरयलायणं अमलियकोरंटपुष्फनियरस्य । सो कपणचलणमुण्डा नीलुप्पल
अ० होह । २ अ० अंगा। ३ अजं एग। ४ अपिउणा।
PenaeemucaAcad
॥२०॥
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