Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंगवईकहा
11 28 11
Jain Educatio
कोइ ॥ ७४ ॥ वाहिद्धजणमेति अहं पुण महिलियं च दुस्सीलं । उवेक्खंतो पावर पच्छा किर दारुणं पीडं ||७५ || हवइ अणस्थासंगो विणासमं गोपयं मायसेगो ति । सव्वत्थेसु पसत्थं सुंदरि ! काले परकंतं । । ७६ || तं न हु पमाइयन्त्रं पयहतु समुट्ठियं दोसं । समातेजं न होच्छे परेसु छेजं इमं होजा || ७७ ॥ एयाणि य अण्णाणि य सु( स ) हिजण सुलभाणि चेडिया सा मं । साणुणयवयणाई पुच्चापच्छाणि भाणीय || ७८ || तो णं समुट्ठिया हं भणामि मा माहि न हु अञ्जिष्णं मे । न वि हु परिस्समो मेन विहु य दट्ठा केण वि अहं ।। ७९ ।। तो भणइ किं खु एयं निव्वत्तगहा सुरिंदलट्ठि व् । जं सि पडिया महियले मुच्छाविलेहिं अंगेहिं ॥ ८० ॥ एवं खु निरवसेसं सुंदरि ! परिपुच्छियाए सजायं। तं मे अयाणियाए कहेहि दामिमि काऊणं ॥ ८१ ॥ अहियं भणामि घरिणि । सारसियं महुरवयणसंलावे । मरग्यमणिघरसरिसे कदलीघरेसु सुहनिमण्णा ।। ८२ ।। सुण सहि । ते साहेमी सव्वसंखेव घडिय महत्थं । जं मुच्छियामि पडिया चोror आलसव्व अहं ॥। ८३ ।। समसुहदुक्खा समर्पसुकीलिया ते (तं) सि मज्झ समजाया । सव्वरहस्सं जाणसि तेण अहं तुज्झ साहमि ||८४|| कण्णदुवारमहगयं जह ते वयणाओ नेय नीहरड़ । तह तं करेसि पियसहि ! साहीअइ तेण तुह एयं ||८५|| मह जीविएण तं सावियासि तोण वसहि पहावेणा । मा कस्सई पि एवं मज्झ रहरसं परिकहेजा || ८६ ॥ इय सवहपरिग्गहिया सारसिया भणइ पायपडिया में । जह भणह तहा काहं इच्छामि कहेह मेयं |||८७(१) || तुझपाएहिं सव्वं नियएण जीविएण पसयच्छि ! । आइटुं जं तुमए जह अहं नेयं पयासेमि ||८८ || नियन्त्र मणुरत्तस्सर्व सारसियवेयं तत्तेह रुणन्ति । न हु मे तुमे रहस्सं नेया किंचि असाहियउति ||८९|| पुण्यमणुभूयदुक्खं तं मे अच्छिण वाहपरिगलन
१ अ० मेययं । २ अ० अच्छीण ।
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सारसियाए
मुच्छाकारण पुच्छा
।। १९ ।।
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