Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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संतरंग___ वईकहा
DO2
गुंजंता ॥ ४२ ॥ महुयरिकुलवोमिस्स ते भमरे कोमलेहिं हत्थेहि। वारेमि अल्लियंति मुहे निलेउं घनस्सन्ते ॥ ४३ ॥ ते तह विवारियंता हत्थेण मे उत्सरंति सुहूतरं । वाएरियपल्लवपरिवएण मण्णे अबीहंता ॥४४॥ तो हुल्लचंपयलपन्न तत्थ अहा भमर| महुयरिगणेहि ।अहियं रहस्सामी भयपस्सिणा थरहरंति ॥४५॥ सो मज्झ रसियमद्दो पणसिश्रो तह आरसंतीए। भमरगणदरियमहुयरिवि विह विहगसंनिणाएणं ॥ ४६॥ हयलालापेलवतरेण तत्थयारेसु उत्तरिजेण । उच्छाइऊण य मुहं विरएमि भएण ममराणं
॥४७॥ नाणारयणविचित्ता कामसराणं निवासभूया य । छिण्णा धावन्तीए महुरसरा मेहला तत्थ ॥ ४८॥ बहुसो परिबीहंती | | अगणंती मेहलं तइ खडियं । किच्छाहिं भमररहियं पत्ता कयलीहरं परिणि! ॥४९॥ तो धाविया य सहसा तहियं आसासिया गिहचेडीए । भरिया य भीरु! भमरेहिं तं सि न ह किर दहविया ।। ५०॥ तं सतिवण्णरुकावं अहं पि पेच्छामि तत्थ हिंडती। पउमसरुड्डीणाणं जं खंड (जत्थ थि) छप्पयगणाणं ।। ५१ ।। नवसरयपुप्फच्छण्णं सरतडमउडं घरं मह(ग)रीणं । भूमियलपुण्णचंदं भमराणं दंतयं पेच्छं ।। ५२॥ ताहि महिलाहिं संतग्गविरुग्गं पुष्फगहणलोलाहि । तं पेच्छिऊण सुइरं पउमसरं मे गया दिट्टी ॥ ५३॥ चीरकणयवलयचिलल्लियाए वामाए 'वाहियाए अहं । अब ठंभिऊग चेडित पउमसरं पलोएमि ॥५४॥ सउणगण विविहमिहुणभयमुइयवायालणालमहालं। भमरालीणमणोहरवियसियसयवत्तवणगहणं ।। ५५। कोकणदकुमुयकुबलयविमउलतामरसबहलसंडणं । उआणचिंधपट्ट पेच्छामि अहं सरवरं ति ॥५६॥ संझायदरतुपलेहि जोण्हा य एव्य कुमुएहिं । | गहाय पत्तनीलुप्पलेहि सो य घरिणि! उगायइव्व ॥५७ (१)। महरिरूवएहि जोयइव हमविरुएहि । नेवइव वायपयालयाय
१ रप्त । २ अ० सण्णि । ३ ख० पायच्छिन्ना। ५ अ० बाहाए।
पउमसरवण्णणं
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