Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
वईकहा ॥११॥
209
परिक्खा
तमेतं विचिंतेइ ॥ ५० ॥ तो हासवियमहो मज्झ पणामेइ तं कुसुमपिडिं। भणइ य मुणेहि पुत्त [प]या! इमीए वण्णाहिगार| मिणं ॥५१॥ तं पुप्फजोणिसत्थंमि सिक्खिया गंधजत्तिमत्थं च । एत्थत्थि तुज्झ विसउ ति तेणभणिगा(या) तुमं पुत्ति ॥५२॥ गतीउ (इमीओ) पंडुराओ पिंडीओ प्रत्ति! सत्तिवण्णाणं । कारणजाएण इमं केण माण(मण्णे) पीइयपिंडी ॥५३॥ अम्हं विम्हयहेउं किं मण्णे होज सिप्पिएण कया। अह जोणीसत्थंमी सिक्खियगुणणपंडणहेउं ।। ५४ ॥ छारोसहिजोगेहि य पुष्फफलाणं |च कीरए पराउ। विग्धं कारणजायं मे इंदयाले जहा दिटुं ॥५५।। उप्पाडनिहियमे रुक्खाणं पोमहगुणेणं । नवरि वण्णविहाणं पुष्फफलाणं च बहू हॉति ॥ ५६ ॥ एव भणियमि ताएणं तत्थ तो हन्नइ कुसुमपिडि । अग्घाइऊण सुइरं आयरतरएण पेच्छामि । ५७।। वण्णरसरुवगंध-गुणफरिमसुपरिच्छिय जाहे । ईहापोहणियमि जाएण तत्थ तो हुन्नई कुसुमविवा(या)रणा गुणसंसिद्धीए। तुट्ठीए बुद्धीए ।।५८(१)।। तो मुणियकाराणाहं भणामि विणयरयणंजलिमउला । आमण्णविहियपरिचयगुणेण पुरओ य तायस्स | ॥५९।। भूमिकालपभवं पोसणमपोसणं च विद्धिं वा । नाऊण पायवाणं पगइविगारा य मारणा)यव्वा । ६०॥ ते पुण सिप्पियजोगुप्पाइयनिहिपोसणकारणेहिं जायंति । ते पंचवण्णहेऊ जे भणह न ते इहं अस्थि ॥६१।। गंधेण सूइओ मेउरकंचणरेणुपिंजरो । सुरवी(भी)पिण्डीए अहुराओ वरपउमरओ इमो ताय ! ।। ६२ ॥ तो भणइ तत्थ ताओ वणस्स मज्झमि होहिई कत्तो । पंकय
यस पुत्तय ! उबवत्ती सत्तिवण्णमि ।।६३।। तो वेमि सुणह ताया ! कारणमिणमोवमाण 'विरहिटुं। जह सत्तवण्णपिंडी पंकयरयपिंजरा इणमो । ६४॥ पुष्फाण य भवरुक्खस्स, सत्तिवण्णम तस्स आमण्णे । भवियव्यो पउमसरो मरयाले पीवरसिरीओ॥६५।।
१ अ. यहण । २. अ० णिमि तापण । ३ अ० मप्पो०। ४ अ. विहिदिटुं ।
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