Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 36
________________ सं० तरंग-1 वईकहा ॥१०॥ सरय. वण्णणं पणमंमि । पुइऊण पूयणिजे अम्मापिइवच्चयामि गया ॥३४॥ पिउणो पायओहण अम्माए वि विणयपुव्वयं कासि । अह वोत्तूण जियहि त्ति तेहिं वेसाविया पासे ॥३५॥ एयंमि देसकाले काली तत्थ धवला य पडकूला । चंदकरभूमिया विव सारयरयणीविरायंता ॥ ३६॥ उउंयपुष्फसमिद्धं नवएलयं(य) संपुढं गहेऊण । पुष्फघरवावडाणे आसणघरगं अतीसीयं ॥३७॥ काऊण अंजलिं सा तायंते रु(भ)णइ भमरमहुरगिरा । ललियपणयंगलट्ठी, घणभरसिस्सेयणविणएगा ॥३८॥ माणस[ण]स(सं)निपत्ता संपइ इह वा संजायपरिओसा । सरयागमघोसणयं, करेन्ति सुहरिसमिमे हंसा ॥३९।। सरउअल्लियमाणो सहसा हंसेहिं पम्ह(ल)धवलेहिं । कासेहि पयासिजइ जउणाकच्छट्टहासेहिं ॥४०॥ नीलंतोगलवणे असणवणे पा(पी)यए करेमाणो । कासेयसत्तवण्णो धवलंतो आगओ सरओ ॥४१।। गहवइ ! वेट्टओ सरओ (नट्ठा) सत्तहिं ते सममेहा । संघह(अग्घइ) जह पउमस रे, तह सेवउ ते चिरं लच्छी ॥४२॥ सा एव जग(जंप)माणी उवागया गहवइस्स उवणेइ । संछण्णं चंगोडं सा महसा ससिपण्णाणं ॥४३॥ तत्थग्घाडियनिग्गयपहाविओ दसदिसा य पूरेन्तो । गयवरमयवग्मयगलो विव गंधो सो मत्तिवण्णाणं ॥४४॥ तं सत्तिवष्णपुव्वं चंगोडं मंत्थयंसि काऊणं । पुप्फेहि तहा अग्धं, अग्हंताणं कुणइ ताओ ॥४५॥ मझं च देइ ताव अम्माए अप्पणो य मालेइ । पेसेइ य पुत्ताणं सकलत्ताणंपि पुष्फाई ॥४६॥ पेच्छइ य उक्खिवंतो सास्यससिनिम्मलेहि कुसुमेहिं । करिदंतपंडराओ पिण्डीओ सत्तिवष्णाणं ॥४७॥ तत्थ य कंचणगारि अमलिय जुयतिपओहरपमाणं । पम्सइ मस्यं "पय| उप्पयकलपिण्डियपिडिनो।। ४८॥ अवरं कणयं सज्झिहं पिंडं विम्हिय फारियनेत्तो पेछइ य चिरं गहेऊणं ।।४९(?) ताओ य तं गहेउं मणमि सविणिच्छियं करेउं जे । तो निचलसव्व(मइ)णा मुहू १ अ० उउय । २ अ. बट्टा । ३ अ० पुण्णं । ४ अ० जुवती । अ० पयण्डं । Feeeeeeeecoopera Jain Education International For Private & Personal Use Only ainelibrary.org

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