Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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उववण
संतरंग
बईकहा ॥१२॥
गमणारंभो
तत्थ दिवाकरकरबोहिएसु निययरयपिंजरीएसु। पउमेसु छप्पयगणा मिलंति मयरंदलोहेणा ॥ ६६॥ ते तत्तो उड्डीणा बहलमय भदपिंजरा रुयरा। अल्लिंति सत्तिवण्णस्स तस्स पुण्ण(ण्णे)सु गुलिएसु ताहे ॥६७॥ छप्पयगणपयनिलीण सुप्पसंकता रेणुभावेणा। तो तेण लच्छिघरा कयवारण आयया जाया ॥ ६८॥ पत्तियमेत्तं प(ए)यं नत्थि विगप्पोत्ति जंपियंमि मए । तो पुप्फवावडास सुठु हु मुणियति ताणीया ॥६९॥ अवयासेऊण य मंसीसे अग्धाइऊण तो ताओ। हेरिसासूरियहियओ पुलइयअंगो इमं भणइ ||७०|| सुटु हु मुणियं पुत्तय !"हियए गयं महदि(वि) एत्तियं चेव । विण्णाणसिक्खियं पुण परिक्खिउं पुच्छिया सि मए ॥७१।। विणयगुणरूवलावण्ण-सीलगुणधम्मविणएहिं । पवरं वरं किसोयरि! पावसु अचिरेण कालेण ॥ ७२ ॥ अम्माए विण्णविओ ताओ व(ब)लियं खु कोउहल्लं मो(मे) । तं सत्तिवण्णरुक्खं वालफजाणियं दट्टुं ॥७३॥ लट्ठ ति भणइ ताओ पत्थसु तं सयणवग्गपरिकिण्णा । कुणसु य मुण्हाहि समं तत्थ मजणं कल्लं ।। ७५ ॥ ताएण आणत्ता तत्थ य कोडुंबिया मयहरा य[हराय] । कलं करेह सजं भोजं मजं उववर्णमि । ७५|| मजाणि सोहणाणि यो (य) गंधे मल्ले य कुणह सजं ति । नीहंति महिलियाओ तत्थ सरमजणं काउं ॥७६॥ धाईहिं य सहियाहि य सब्बाहि वि नियभाउजायाहिं । अभिणंदियामि बहुसो 'समंता सपराहिं तो घरिणि !
७॥ धाईए अहं भणिया सजं ते जेमणं इमं पुत्त । ता उबविससु मुंजसु नाते(ति)वेला 'अइच्छि हसओ(?) |७८॥ इए भोयणकाले जो च्छाओ न भुंजए तहा पुत्त !। अग्गी निरिंधणा(णो) विव विज्ञायइ तस्स कायग्गी ।। ७९ ॥ कायग्गी किर संतो वण्णं स्वं च सोउमलं च । छायं बलं च हणए बो. हेस्स सुहे उघणमंतो (?) |८०॥ तो एहि पुत्त ! भुंजसु या ते कालबएण १० सुफ २ अ० घर०। ३ हरिसाउरियः । ४ अ० हिययः। ५ समतो ६ अइच्छिउं जो।
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Cococcaseeeeeeee
॥१२
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