Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 40
________________ सं० तरंगवईकहा ॥ १४ ॥ हलकणय रयण संघडिए । ते भूसणसव्वस्से सिप्पियविष्णाण निम्माए || ९७ || सुंदरे वणकरं सोहेग्गाणुगहंति पसाहणयं । जोवणगुणसाहगं विलया ||९८ (१) || तो सव्वसयण महिला आमंतिय आगयासु तासु तहिं । सञ्जीकवनिग्गमणा अम्मा उज्जाणगणस्स । ९९ (१) ॥ ताहिं महिलाहिं समयं वट्टते सोहणंमि य मुहुत्ते । सव्वसमिद्धीए तओ उज्जाणं पत्थिया अम्मा ॥ २०० ॥ अणुओ य अम्मा तत्थ वेगेण नीड़ जुवईजणो । आभरण खणेण तयं भवणस्स पहं परेंतो || १ || नेउररुणरुण सद्दो रुणवरयण| मेहला खलखलया। मंजीरखिखिणीण य, सदुग्धीसासुहो सो उ || २ (१) ॥ तत्तो गच्छंतीणं जणस्स ओस्सारणं पित्र करे | धम्मह नंदी तुरंतीसिंनियया भरुण तूरं ।। ३ (१) ॥ इय तासिं निग्गमणं कहियं मे उगवाहिं चेडीहिं । चाहितुं तत्यागयाहिं अम्मा मिउरणं अपि ॥४॥ सहीहिं समं क्रमेण मजियपसाहिया घरिणि !। सेच्चारु (रण)मणोहर महरिहचिंल्लियंगीहिं ॥५(१) ॥ सा गिट्टिविधपेट्ट कंचणपिडिए मण्डियमुयारा । हरिहसोडा लन्डं पट्टसु वत्थं नियच्छामि ।। ६ ।। आभरणवमण महरिहरयणसमूहप्पहा वियाणेण । विउणीकयभायण्णा उउपुष्किय चंपयलयव्त्रा ।। ७(१) । उवनिग्गयामि महमा चेडीणं चकवालपरिकिष्णा । वाहिरकोट्टगलग्गं चाउरसालंगणं कन्हं ॥ ८ ॥ ते च्छत्तयं 'जुवइदट्ठआभरणवमण विवइयं, इंदस्स निलयपरिपिंडियं च पवरच्छरसमूहं ||९|| तत्थ य वाणविलग्गो वेइलनिग्गहणवोयणं समत्थ । वाहर सारहीगं वोचूण अजोच्च णोवाली ॥ १० ॥ पहेह कुमारि ! तुमं संदिट्टु अञ्ज सेट्टिणा तुम्हं । उवनणवमण विभाग जाणमिण मणोवब सिरीयं ।। ११ ।। तो एव जंपमाणेण तेण १ अ खलाया । २ अवि । ३ कन्दं । ४ अ जुवतिजण Jain Education International For Private & Personal Use Only ।। १४ ।। www.jainelibrary.org

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