Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग। वईकहा
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गहियाए । कोई हवेज दोसो ति साणुसंक अहं भणिया ।। ८१ ॥ खीरेण सित्तसुक्दुछेत्तकेजारवप्पजायस्स । तिक्खुत्तो उक्खयरो वियस्सा सम्बिद्धपदस्स ।। ८२।। कयभंगमलियकुट्टियनिकणियपलयसारियं सयलं । ससिखीरं सुद्धवणं मिउनेहरसगाई ।। ८३१ ।। कतिमं अवि गलियगुणं वेहवाफयं पिव सवाफ। सरहियपमूयवंजणा विविहोल्लयाणि य समयं ॥८४(१)।। जिमियामि जहुदिहिय मियसिद्धं उइयंमि कालमि । वण्णरसगंधए सयलगुणमालिं धुंजिया सालि ।। ८५ ॥ हत्थोदगं च दिण्णं परिणि ! महं भायणमि य(अण्णमि । हत्वा य लूहिया मे खोमेण सुगंधवत्थेण ॥८६॥ भोयणगवहत्थ च य तेल्लं तओ मए च्छिकं । हत्थमुहमंडणथं परियण परिमंडयंती ॥८७१। 'एकल्ल किर उजाणं निग्गच्छामो तत्थ जुवतीणं । मणपरिओ सुप्फालो मुहेसु परियट्टिो हासो ।८८॥ तो दिवसगया पवित्ती संपत्ता चक्खविसयनिबित्ती । रत्ती कम्मनिवित्ती निंदप्पत्ती मणुस्साण ||८९॥ सयणंमि य सुत्ताए पास ट्ठियदीवनासि व तमोहा। सावि सुहेण गया मे मयलंछणलंछिया रत्ती ।। ९० ॥धोयमुहहत्थपाया अग्हते वंदिऊण माह य । संखेवपडिकता उववणगमणसुया अहयं ॥९१॥ उजाणगमणतुरियाहिं तत्थ अहं परंमि जुव. तीहि । अलसगमण त्ति रत्ती बहुयाहिं वजउवालट्ठी(लभो) ॥९२।। उजाणगमणपेच्छणसंलावकहाहि जग्गमागीणं । कासिं 'विअइकंता मजणयमणोरहकहाहि ॥ ९३ ॥ पूइयआरक्खियकम्मकारिणो मयहरणरा परियणो य । भोजं समीहिउं जे उजाणं ते गया पुब्धि ॥ ९४ । सो गयणगमणए हिओ सहमा जासुयणकुसुमसंकासो। उ
वयणवियसावओ सूरो ।।९५॥ | गिर्हति विविहरागे पट्टे खोमे य कोसियारे य । चीणंसुए य वत्थे महन्धमोल्ले विचित्ते य ॥९६ ।। गिण्हंति य सविसेसे मुत्ता १ अ० मुग्विद्धि । २ अ० बहुवप्फक्सियं । ३ अ० सुरहिया४० एकलं । ५ अ० मोति । ६ भा० विभ७ दिसं कमलवणविरा
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॥१३॥
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