Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
वईकहा ॥८॥
तरंगवई. जम्मो
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कणेडिया जाया ॥२॥ सुहवट्टिया य गए अविभाणिय दोहलाए किरं कालो । सीहसुयणमि आया सुपरिग्गहिया य धाईहिं | ॥३॥ तो मित्तबंधवाणं जाओ अचंतकिरपमोउ त्ति | बद्धावणयं च कयं मह जम्मे अम्मताएहिं ॥४॥ सव्वं च जायकम्मं कर्य | किर महं जहाणुपुव्वीए । नाम च बंधवा मे पिउणो मोऊण कासी य॥५॥ इणसोयवायएयमियं (?) तरंगभंगाउला वा
जउणाए। उवयाइयादिणा तो होउ तरंगवइय ति ॥६॥ मुट्ठीबंधणसीला आया संपायए हिचोल्लंती। उच्छल्ला किर सयणो(णे) | उत्ताणयसजिरी अच्छं ॥ ७॥ तो अंकखीरधाईजणेण किमं(ड)तरेण केणं पि। रंगाविया अहं किर नाणामणिकोट्टिमतलेसु ॥८॥ खेल्लणया किर मज्झं परिणी! मोवणिया खिलिखिलिया । अप्फोड(ण)वजं किर कणयघणफडकया आसि ॥९॥ निश्चं पहसियमुइया इउ इउ एहि बनवजणस्स । अंकेसु रमन्ती किर करेमि हासुल्लए बहुए ॥१०॥ अणुसिरि कयाओ किर मए जणस्स | अस्थि सुहत्थसण्णाओ । समणमहरपलावे तत्थ मणिया करेमि अहं ॥ ११॥ अंकपरंपरबूढा अम्मपियभाइये सव्वग्गेणं । कालंतरेण केणइ चंकमिउमहं पवत्तामि ।। १२ ।। अम्बत्तयमंजुलयं अकलियं तातओत्ति जंपती । चत्तवजणस्स पाइं पीवरतरियं किर करेमि ॥१३॥ निव्वत्तचोलकम्मा चेडीयाचक्यालपरिकिण्णा । हिंडामि जहिच्छाए पयईहिं मे कहियं ॥१४॥ केणयपुत्तधीउल्लएहिं पंसुघरउल्लएहिं य रमामि । सहियायणेण सहिय(या) बालयकलिं अणुभवामि ॥ १५ ।। गम्भट्ठमंमि वरिसे अह मे बुद्धी चउविहा वेया । आणीया आयरिया कलागुणविसारया धीरा ॥१६॥ लेहं गणियं रूवं आलेक्खं गीयवाइयं नटुं । पत्तच्छेजं पुक्ख| रगयं च कमसो य गिहामि । १७॥ निउणिं च पुण जोणि निउणं तह गंधजुत्तिसत्थं च। विविहा अमिरमणीया कालेण कलाओ
१ कनिष्टिका । २ अ० क.णयमयपु० ।
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॥८॥
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