Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 33
________________ सं० तरंग पुवकहा वईकहा रंभो ॥७॥ reamerecare टexercomen ॥८६॥ रयणाणं उन्भउ(को) सगा(मा)गमो आगमप्पहाणाणं । आई मजायाणं खेत्त(त)धम्मत्यकामाणं ॥८७॥ सोक्खं च पत्थणिज्जो छेयजणविणिच्छउव्व रमणिजो। निब्याणं पिंव वासो धम्मोव्व को जहा सफलो।।८८॥ पुरवरजणकोलंत्थी(बी) तत्थ पुरी देवलोए वेलत्थी (लंबी)। सव्वजणमणालथी(लंबी) 'कोसंबी' नाम नामेण ॥८९।। सा मज्झदेसलच्छी उवमाणं अण्णरायनगराणं । ललियसमिहजणनिही रुंदी जउणा नदीतीरे॥१०॥ तत्थ य अपरिमियवलो समरपरक्कमपयावविक्खाओ । नामेण उदयणो नाम साहुजणवच्छलो राया ॥९१॥ मित्तजणसोक्खरुक्खो सत्तुवणदावा(वो) जसरस आवासो। भडवग्गसमाउलो सग्घोxxx |९२।। कंतीए पुण्णचंदो सरेण हंसो गतीए नरसीहो । हेहयकुलंमि जाओ हयगयरहजोहपउरंमि ॥९३॥ जस्स य वासवदत्ता उचमकुलसीलरुवसंजुत्ती(ता) महिलागुणसंपत्ती(ता)पत्ती इसोक्खसंपत्ती(त्ता)।९४|| तस्मति(त्थि) नगरसिट्ठीवयंसओ उसहसेणो नाम । नेगमपढमासणिओ पासणिओ सबकजेसु ॥९५।। निउणत्थसत्थपरमत्थजाणओ सन्धमत्थनिम्माओ । निहसो पुरिसगुणाणं | ववहाराणं च सव्वेसि ॥ ९६ । सोम्मो य गुणरासो(सी) मिउ(य)महुरपसत्थका लसंलाची | थिरमजायचरित्तो अकडयवहार|| ववहारी ॥९७ ।। सम्मंदसणसुविसुद्धबुद्धी निसंकिओ पवयणमि । जिणवयणसावओ सो मोक्खसुइ पडिवसी ॥९८॥ चप्प मोविहण्णू जीवाजीवे कयाभिगमो। सावयगुणाण नियरो आहारो नाणदंसणवयाणं ॥ ५९॥ विणयस्से रयणाक्ख निजरविवे॥ यसंवरमहत्थवी । एत्था(इचा)इपुण्ण विहष्णू सीलव्ययतुंगपागारा(रो) ॥१०॥ कुलवंसस्स दीवो निचं पयइजणदीणसीयधरो। जो लहिमज्झिमघरो गुणरयणसिरिधरो धीरो॥१॥"तए बालियाहं उवयाइयलद्धिया पिया घरिणि । अठण्हं पुत्ताणं मग्गेण १ अ० इं। २ अ० सुई पंथपडिवणि णो)। ३ बंधमोक्खविहण्णू । ४ मा० तय०। Romecacance Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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