Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 30
________________ सं० तरंगचई कहा ॥ ४ ॥ Jain Education मज्झेहिं । आलीणभमरजुयलं वा मज्झे फुडवियसियं कमलं ॥ ४१ ॥ सुकुमालपाणिपायं राहियलच्छिसच्छहं अजं । सहसा दट्टण तयं इणमो घरिणी विचिते ॥ ४२ ॥ न य सुविणए न लेप्पे न वि चित्तकम्मे कहासु य बहुसु । दिट्ठव्व सुयव्व मए अणाइय सुंदरि महिला || ४३ || लायणघडया कोप्पुहु सोहयमंजरी इणमो । पत्ता य चंदजोण्हरूवगुणसमणिया इहई ॥ ४४ ॥ किं होज पयावरणा इणमो वग्जुवइसव्वसारेण । रूवगुणसमाउत्ता सव्वायरनिम्मिया सुयणू || ४५ || जड़ ताव एरिसं मे मुण्डिय भावाए होज लावण्णं । आसी य गिहत्तणए रूव सिरी केत्तियं सणं (मणे) ॥४६॥ भूसणरहिएसु वि किह व ताब जल्लमइलेसु [इए] अंगेसु । जत्थ डिया मे दिड्डी तत्तो न व रजड़ चलेउं ॥ ४७ ॥ सव्वंगेसु अनिमिसा पेच्छणलोला मंड सुरूवत्ति । लग्गंती लगिंगति (१) कहिं विहिं वाविया दिड्डी || ४८ || अजाए कंतिजुत्ते अणण्णसरिसे मणपासायकरे | अच्छरसाणंपि भवे मणोरहो एरिसे रू ।। ४९ ।। मोत्तृण संउमवे तोणेण संडेगहिया नवच्छा (१) । घरमइगया भगवती दाणगुणपडोच्छया लच्छी ।। ५० ।। लोगे य परसुई सच्चा किर देवा अनिमिसत्ति । "अच्चायमल्लादामा अरयंबरदेवीरा (१) || ५१ ॥ जड़ वि विकुरुध्वमाणा करंति नाणाविहाणि रूवाणि । तह वि किर तेसि नयणा हवंति निमिमुंसिसणहीणा ।। ५२ ।। जह 'सेरयाऽवकिण्णा पाया निमिस्संति लोयणाई च । एएण कारणेणं न हु देवी माणुसी एसा || ५३ || अहवा किं मे इय संसएण पुच्छामि णं उवारणं । हत्थिम्मि दिस्समाणे कीस पयाई विमग्गास (म ) ||५४ || एवं कयभिप्पाया, तीसे रूवगुणको उहल्लेण । विम्हयपुलइयमत्ता सा घरिणी भणइ तं अजं ॥ ५५ ॥ १ अ० को गुहु । २ अ० मए । ३ अ० अ० मंड० । ५ अ० अव्वाय० अम्लानेति । ६ सेयर यावकिण्णा पाया। Onal For Private & Personal Use Only साहुणी चमणं सोबा क. सा. 11 8 11 jainelibrary.org

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