Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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ॐ अहे नमः। अनन्तलब्धि निधानाय श्रीगौतमगणधराय नमः ।। शासनसम्राट-आचार्यदेवश्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वर पादपद्मभ्यो नमः । हाईयपुरीयगच्छीयवीरभद्दमूरिपुंगवाणं सीसरयणगणिनेमिचंदस्स जसेण (!) लिहिया ।
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संखित्ततरंगवईकहा (तरंगलोला)
वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवप्रयलमणोवमं सुहं पत्ते । जरमरणमगरपउरं दुक्खसमुदं समुत्तिण्णे ॥१॥ संघसमुद्द(६)गुणविणयसलिलविण्णाणनाणपंडहत्थं । वंदामि विणयविरइयकयंजलिउडो नओ सिरसा ॥२॥ भई मरस्सईए सत्तस्मरकन्य वसहीए । जीए गुणेण कइवरा मयावि नामहि जीवंति ॥ ३॥ कब्बसुवण्णनिहमस्मिलाए निउणकइसिद्धिभृमिए । एरिसाए होउ
भई गुणदोसवियाणासहाए ॥ ४ ॥ पालित्तएण रइया वित्थरओ तह य देसिवयणेहिं । नामेणा तरंगवईकहा विचित्ता य | विउला य ।। ५ ।। कत्थ य कुलयाई म गोरमाई अन्नत्थ गुबिलजुयलाई । अण्णत्थ (छ)कलाई दुःपरिअल्लाइ इयराणं ॥ ६॥ न
य सा कोइ सुणेई ना पुण पुच्छेइ नेव य कहेइ । विउमाण नवर जोगा इयरजणो तीए किं कुणउ ।। ७॥ तो उच्चेजणं गाहाओ || पालित्तएण रइआओ देसीपयाइ मोत्तु संखित्तयरी कया एसा ॥ ८ ॥ इयराण हियट्ठाए, मा हा(हो)ही सव्यहावि वोच्छ
१ प्रतिपूर्णम् । २ अ इ । ३ दुर्गमानि । ४ अ० इं।
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