Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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स्वरूप-संबोधन - परिशीलन
/ xix
सम्पादकीय
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हर जीव अपनी आत्मा को कैसे सम्बोधे, ताकि वह मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो • सके, - यह काम रचनाकार ने पच्चीस श्लोकों के द्वारा 'स्वरूप- सम्बोधन' कृति में किया है। इसलिए रचनाकार का स्वयं का स्वयं के द्वारा स्वयं को संबोधन है स्वरूप- सम्बोधन, पर खास बात यह है कि यह संबोधन सामान्य भाषा में या शास्त्र - सामान्य की भाषा में नहीं है। यह संबोधन है न्याय की भाषा में या नैयायिकों की भाषा में, इसीलिए तो रचनाकार ने धुर विरोधी शब्दों को या यूँ कहें कि विरोधीरूप-जैसी लगने वाली प्रतिगामी - अवधारणाओं को एक-साथ रखकर परमात्मा को नमस्कार किया है स्वरूप- सम्बोधन के मंगलाचरण में, इसीलिए तो वे वहाँ कहते हैं कि वह परमात्मा मुक्त भी है और अमुक्त भी । इसप्रकार रचनाकार ने अध्यात्म के गूढ़ तत्त्व को न्याय की भाषा में परोसा है इस स्वरूप - सम्बोधन कृति में ।
कृति की सम्पादन - प्रक्रिया पर बात करने से पहले मुझे लगता है कि यहाँ अग्रांकित तीन बिन्दुओं को लेकर थोड़ी-सी चर्चा कर लेना आवश्यक है, ये बिन्दु हैंलॉजिक, न्याय-शास्त्र और अकलंक | लॉजिक "Logic" आज लगभग पूरी दुनिया में पढ़ा व पढ़ाया जाता है, जबकि न्याय - शास्त्र भारतीय पारंपरिक मनीषा का अभिन्न अंग रहा है और इस कृति के मूल रचनाकार 7वीं शताब्दी के आचार्य श्री भट्ट अकलंकदेव जी ने न्याय - शास्त्र की उस भारतीय परंपरा को सोचने के लिए एक नयी दिशा दी है; अतः जरूरी यह है कि लॉजिक, न्यायशास्त्र और अकलंकदेव की इस कृति के सन्दर्भ में व वर्तमान सामाजिक सन्दर्भ में कुछ संक्षिप्त विषय चर्चा कर ली जाय, क्योंकि उसके बिना कृति के परिदृश्य और उसके लक्ष्य को ठीक से नहीं समझा जा सकेगा ।
पश्चिम में हर विद्यार्थी के लिए लॉजिक "Logic" पढ़ना अनिवार्य है। यह अनिवार्यता केवल कलाओं के विद्यार्थियों के लिए हो, या फिर समाज - विज्ञान के या विज्ञान के, – ऐसा तथ्य नहीं है। पश्चिमी दुनिया में हर किसी ज्ञान - शास्त्र के विद्यार्थी / अध्येता को लॉजिक "Logic" में शिक्षित और दीक्षित होना पड़ता है। पश्चिमी दुनिया में लॉजिक "Logic" की शिक्षा के बिना किसी भी विद्या में निष्णात हो पाना सम्भव नहीं माना जाता, इसलिए वहाँ हर विद्यार्थी / अध्येता के लिए लॉजिक "Logic" पढ़ना अनिवार्य है । हमारे यहाँ भी एक काल विशेष में न्याय - शास्त्र के बारे