Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
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ज्ञाति के लिए, अगार हेडं घर के लिए, णागहेडं नाग के लिए, भूतहेडं भूत के लिए, जक्खहेडं - यक्ष के लिए, णिसिरइ - प्राणियों को दंड देता है, तप्पत्तियं उस क्रिया के कारण, सावज्जं - सावद्य
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कर्म का ।
भावार्थ - जो पुरुष अपने लिये अथवा अपने ज्ञाति, परिवार, मित्र, घर, देवता, भूत और यक्ष आदि के लिये त्रस और स्थावर प्राणी का स्वयं घात करता है अथवा दूसरे से घात कराता है तथा घात करते हुए को अच्छा मानता है उसको प्रथम क्रियास्थान अर्थदण्डप्रत्ययिक के अनुष्ठान का पापबन्ध होता है । यही प्रथम क्रियास्थान का स्वरूप है ।। १७ ॥
विवेचन - कई मतावलम्बी सार्थक अर्थात् प्रयोजन वश की जाने वाली क्रियाओं से कर्म बन्ध नहीं मानते हैं परन्तु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के सिद्धान्तानुसार प्रयोजन वश की हुई क्रिया से भी पाप कर्म का बन्ध होता है। इसलिये शास्त्रकार स्पष्ट कर देते हैं कि जो पुरुष अपने लिये या किसी दूसरे के लिये त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है, करवाता है और अनुमोदन करता है उसे उस सावध क्रिया के फलस्वरूप अर्थ दण्ड प्रत्ययिक पापकर्म का बन्ध होता है।
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अहावरे दोच्चे दंड-समादाणे अणट्टा-दंड- वत्तिए त्ति आहिज्जइ ।
से जहा णामए केइ पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंति, ते णो अच्चाए, जो अजिणाए, णो मंसाए, णो सोणियाए, एवं हिययाए, पित्तार, वसा, पिच्छाए, पुच्छाए, वालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, जहाए, ण्हारुणिए, अट्ठीए, अट्ठिमंजाए, णो हिंसिंसु मे त्ति, णो हिंसंति मे त्ति, णो हिंसिंस्संति मे त्ति; णो पुत्तपोसणा णो पसु -पोसणाए, णो अगार- परिवूहणताए, णो समण-माहण वत्तणाहेउं णो तस्स सरीरस्स किंचि विप्परियादित्ता भवंति; से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपइत्ता, विलुंपइत्ता, उद्दवत्ता, उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवइ अणट्ठा - दंडे ।
से जहा णाम के पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति, तंजहा- इक्कडा इ वा, कडिणा इवा, जंतुगाइ वा, परगा इ वा, मोक्खा इ वा, तणा इ वा, कुसा इ वा, कुच्छगा इवा, पव्वगा इवा, पलाला इ वा, ते णो पुत्त-पोसणाए, णो पसुपोसणाए, णो अगार - पडिवूहणयाए, णो समण - माहण - पोसणयाए, णो तस्स सरीरगस्स किंचि विपरियाइत्ता भवंति से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपइत्ता, विलुंपइत्ता, उद्दवइत्ता उज्झउं बाले वेरस्स आभागी भवइ, अणट्ठा - दंडे ।
से जहा णाम के
पुरिसे कच्छंसि वा, दहंसि वा, उदगंसि वा, दवियंसि वा,
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