Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
आहार प्राप्ति में हिंसा की सम्भावना होने से साधु-साध्वी वर्ग को संयम निर्वाह के लिये निर्दोष शुद्ध आहार पानी ग्रहण करना चाहिए ऐसी तीर्थङ्कर भगवन्तों की आज्ञा है। इस बात की चर्चा भी इस अध्ययन में की गयी है।
सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु आहार-परिण्णाणामज्झयणे, तस्स णं अयमढे - इह खलु पाईणं वा ४ सव्वओ सव्वावंति य णं लोगंसि चत्तारि बीयकाया एवमाहिजंति, तंजहा-अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, तेसिंच णं अहाबीएणं अहावगासेणं इहेगइया सत्ता पुढवीजोणिया, पुढवीसंभवा, पुढवीवुकमा, तज्जोणिया, तस्संभवा, तदुवकमा, कम्मोवगा, कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा, णाणाविहजोणियासु पुढवीसुरुक्खत्ताए विउद्भृति ॥ते जीवा तेसिंणाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेह-माहारेंति, ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं, आउसरीरं, तेउसरीरं, वाउसरीरं, वणस्सइसरीरं ॥णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति, परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूवियकडं संतं । अवरेऽवि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपुग्गलविउव्विया ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंतित्तिमक्खायं ॥४३॥ __ कठिन शब्दार्थ - बीयकाया - बीज काय, अग्गबीया - अग्रबीज, मूल बीया - मूल बीज, पोरबीया - पर्व बीज, खंधबीया - स्कंध बीज, अहाबीएणं - अपने अपने बीज के अनुसार, अहावेगासेणं - अपने-अपने अवकाश (स्थान) के अनुसार, पुढवीसंभवा- पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाले, पुढवीवुक्कमा- पृथ्वी पर वृद्धि को प्राप्त करने वाले, परिविद्धत्थं - परिविध्वस्त (प्रासुक),तयाहारियंत्वचा के द्वारा आहार किये हुए, सारु-वियकडं - अपने शरीर के रूप में, णाणाविहसरीरपुग्गलविउव्विया - नाना प्रकार के शरीर पुद्गलों से विरचित ।
. भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से कहते हैं कि-श्री महावीर भगवान् ने आहार परिज्ञा नामक एक अध्ययन का वर्णन किया है। उसका अभिप्राय यह है-इस जगत् में एक बीजकाय नामक जीव होते हैं उनका शरीर बीज है इसलिये वे बीजकाय कहलाते हैं । वे बीजकाय वाले जीव चार प्रकार के होते हैं जैसे कि-अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज और स्कन्धबीज । जिनके बीज अग्रभाग में उत्पन्न होते हैं वे अग्रबीज हैं जैसे-तिल ताल, आम और शालि आदि । जो मूल से उत्पन्न होते हैं वे मूलबीज कहलाते हैं जैसे-आदा (आर्द्रक) आदि । जो पर्व से उत्पन्न होते हैं वे पर्वबीज कहलाते हैं जैसे-इक्षु आदि । जो स्कन्ध से उत्पन्न होते हैं वे स्कन्धबीज कहलाते हैं जैसे सल्लकी आदि ।
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