Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 215
________________ २०६ श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २ पारलोइयत्ताए पच्चायंति, ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया, ते दीहाइया, ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ जाव णो णेयाउए भवइ । भावार्थ - भगवान् श्री गौतम स्वामी कहते हैं कि - इस जगत् में बहुत से प्राणी चिरकाल तक जीने वाले हैं जिनमें श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान होता है और वे व्रत ग्रहण के दिन से लेकर मरणपर्य्यन्त उन्हें दण्ड नहीं देते हैं। वे प्राणी पहले ही काल को प्राप्त होकर परलोक में जाते हैं। वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं। वे महान् शरीर वाले तथा चिरकाल की स्थिति वाले और दीर्घ आयु वाले एवं बहुत संख्या वाले हैं। इसलिये श्रमणोपासक का व्रत उनकी अपेक्षा से सुप्रत्याख्यान होता है अतः श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना उचित नहीं है। भगवं च णं उदाहु संतेगइया पाणा समाउया जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ ते सयमेव कालं करेंति करित्ता पारलोइयत्ताए पच्चायंति ते पाणा वि वुच्चंति तसा वि वुच्चंति ते महाकाया ते समाउया ते बहुयरगा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ जाव णो णेयाउए भवइ । भावार्थ - भगवान् श्री गौतम स्वामी कहते हैं कि - कोई प्राणी समान आयु वाले होते हैं। जिनको श्रमणोपासक व्रतग्रहण के दिन से लेकर मरण पर्यन्त दण्ड देना वर्जित करता है । वे प्राणी स्वयमेव काल को प्राप्त होते हैं और काल को प्राप्त होकर परलोक में जाते हैं। वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं, वे महान् शरीर वाले और समान आयु वाले तथा बहुत संख्या वाले हैं अतः उनमें श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान सविषयक होता है। अतः श्रमणोपासक के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना उचित नहीं है। भगवं च णं उदाहु संतेगइया पाणा अप्पाउया, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ, ते पुव्वामेव कालं करेंति करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायंति, ते पाणा वि वुच्चंति ते तसा वि वुच्चंति ते महाकाया ते अप्पाउया ते बहुयरगा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, जाव णो णेयाउए भवइ । कठिन शब्दार्थ - अप्पाउया - अल्प आयु वाले । भावार्थ- इस जगत् में बहुत से त्रस प्राणी अल्प आयु वाले होते हैं वे जब तक जीते रहते हैं तब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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