Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
विलम्ब मत करो । इसके पश्चात् उदक पेढाल पुत्र श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के निकट चार याम वाले धर्म से पंच महाव्रत वाले धर्म को प्रतिक्रमण के साथ प्राप्त करके विचरता है।
तिबेमि - इति ब्रवीमि - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य श्री जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे .. आयुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ। अपनी मनीषिका (बुद्धि) से कुछ नहीं कहता हूं।
इति णालंदाजं सत्तमं अज्झयणं समत्तं॥ इति सूयगडांग बीयसुयक्खंधो समत्तो॥
इति सूयगडसुत्तं समत्तं यह नालन्दीय नामक सातवां अध्ययन सम्पूर्ण हुआ। यह सूत्रकृताङ्ग सूत्र का दूसरा श्रुतस्कन्ध सम्पूर्ण हुआ।
यह सूत्रकृताङ्ग सूत्र सम्पूर्ण हुआ।
इति कल्याणमस्तु
इति शुभमस्तु
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