Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ५
४५
होने पर निर्जरा की सिद्धि अपने आप ही हो जाती है अतः विवेकी पुरुष को वेदना और निर्जरा नहीं है यह नहीं मानना चाहिये।
चलना, फिरना आदि क्रिया है और इनका अभाव अक्रिया है। इन दोनों की सत्ता अवश्य है तथापि सांख्यवादी आत्मा को आकाश की तरह व्यापक मान कर उसे क्रिया रहित कहते हैं । एवं बौद्ध लोग समस्त पदार्थों को क्षणिक कहते हैं। इसलिये बौद्ध के मत में एक उत्पत्ति के सिवाय पदार्थों में दूसरी कोई क्रिया ही सम्भव नहीं है। उनका यह पद्य भी इस बात का द्योतक है जैसे कि-"भूतियेषां क्रिया सैव, कारकं सैव चोच्यते ।" अर्थात् पदार्थों की जो उत्पत्ति है वही उनकी क्रिया है और वही उनका कर्तृत्व है। एवं इस मत में सभी पदार्थ प्रतिक्षण अवस्थान्तरित होते रहते हैं इसलिये उनमें अक्रिया यानी क्रिया रहित होना भी सम्भव नहीं है वस्तुतः ये दोनों ही मत ठीक नहीं है क्योंकि आत्मा को आकाश की तरह सर्व व्यापक और निष्क्रिय मानने पर बन्ध और मोक्ष की व्यवस्था नहीं हो सकती है। एवं वह सुख दुःख का भोक्ता भी नहीं सिद्ध हो सकता है इसलिये आत्मा को आकाशवत् सर्वव्यापक मान कर उसमें क्रिया का अभाव मानना अयुक्त है इसी तरह समस्त पदार्थों को निरन्वय क्षणभङ्गर मान कर. उत्पत्ति के सिवाय उनमें दूसरी क्रियाओं का अभाव मानना भी अयुक्त है क्योंकि-ऐसा मानने पर जगत् की दूसरी क्रियायें जो प्रत्यक्ष अनुभव की जा रही है उनका कर्ता कौन होगा ? तथा आत्मा में सर्वथा क्रिया का अभाव मानने पर बन्ध और मोक्ष की व्यवस्था नहीं होगी अतः बुद्धिमान् पुरुष को क्रिया और अक्रिया दोनों का अस्तित्व स्वीकार करना चाहिये ।। १८-१९॥ . __णत्थि कोहे व माणे वा, णेवं सण्णं णिवेसए ।
अत्यि कोहे व माणे वा, एवं सण्णं णिवेसए ॥२०॥
भावार्थ - क्रोध या मान नहीं हैं यह नहीं मानना चाहिये किन्तु क्रोध और मान हैं यही बात माननी चाहिये । . . . .. णस्थि माया व लोभे वा, णेवं सण्णं णिवेसए ।
अस्थि माया व लोभे वा. एवं सण्णं णिवेसए ॥२१॥
भावार्थ - माया और लोभ नहीं हैं ऐसा ज्ञान नहीं रखना चाहिये किन्तु माया और लोभ हैं ऐसा ही ज्ञान रखना चाहिये।
णत्यि पेज्जे व दोसे वा, णेवं सणं णिवेसए । अत्थि पेज्जे व. दोसे वा, एवं सण्णं णिवेसए ॥२२॥
भावार्थ - राग और द्वेष नहीं हैं ऐसा विचार नहीं रखना चाहिये किन्तु राग और द्वेष हैं यही विचार रखना चाहिये।
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