Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 199
________________ १९० श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २ के कारण वह परम विश्वास पात्र था। उसके प्रति किसी प्रकार की शंका किसी को नहीं होती थी। वह चतुर्दशी अष्टमी पूर्णिमा एवं दूसरी शास्त्रोक्त कल्याणकारिणी तिथियों में आहार शरीरसत्कार और अब्रह्मचर्य का त्याग करता हुआ परिपूर्ण देश चारित्र का पालन करता था । वह श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रासुक और एषणीय आहार आदि देता हुआ तथा पौषध और उपवास आदि के द्वारा अपने को पवित्र करता हुआ धर्माचरण करता था ।। ६९॥ तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स णालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं सेसदविया णामं उदगसाला होत्था, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठा पासाईया जाव पडिरूवा, तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए, एत्थ णं हत्थिजामे णामं वणसंडे होत्था, किण्हे वण्णओ वणसंडस्स ॥७॥ कठिन शब्दार्थ - सेसदविया - शेष द्रव्या, उदगसाला - उदकशाला (जलशाला), अणेगखंभसयसण्णिविट्ठा - अनेक प्रकार के सैकडों खंभों से युक्त। भावार्थ - उस लेप नामक गाथापति की नालन्दा से बाहर उत्तर पूर्व दिशा में शेष द्रव्या नामक जलशाला (प्याऊ) थी वह जलशाला अनेक प्रकार के सैकडों खम्भों से युक्त थी तथा वह बड़ी मनोहर और चित्त को प्रसन्न करने वाली बड़ी सुन्दर थी । उस जलशाला के उत्तर पूर्व दिशा में हस्तियाम नाम का एक वनखण्ड था वह वनखण्ड कृष्ण वर्ण वाला था तथा शेष वर्णन उववाई सूत्र में किये हुए वनखण्ड के वर्णन के समान ही जानना चाहिये ।।७०॥ तस्सिं च णं गिहपदेसंमि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे आरामंसि। अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे णियंठे मेयजे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता भगवं गोयम एवं वयासी-आउसंतो ! गोयमा अस्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च आउसो ! अहासुयं अहादरिसियं मे वियागरेहि सवायं, भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी अवियाइ आउसो सोच्चा निसम्म जाणिस्सामो सवायं उदये पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी॥७१॥ कठिन शब्दार्थ - गिहपदेसंमि - गृहप्रदेश में,पासावच्चिजे- पापित्यीय,मेयग्जे - मेदार्य (मेतार्य),पदेसे - प्रदेश-प्रश्न,पुच्छियव्वे - पूछने हैं,अहादरिसियं - यथादर्शित-जैसा आपने निश्चय किया है,सवायं - सवाद-वादसहित । भावार्थ - इस वन खण्ड के गृह प्रदेश में भगवान् गौतम स्वामी विचरते थे। भगवान् गौतम स्वामी बगीचे में विराजमान थे। इसी अवसर में उदक पेढाल पुत्र जो भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्यानुशिष्य थे उनका गोत्र मैदार्य (मेतार्य) था। भगवान् गौतमस्वामी के पास आये आकर इस प्रकार कहा कि - ' हे आयुष्मन् गौतम! मुझे आपसे कुछ प्रश्न पूछने हैं। उनको आप ने जैसा सुना है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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