Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 206
________________ " अध्ययन ७ कस्स णं तं हेउं ?, संसारिया खलु पाणा, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसा वि पाणा थावरताए पच्चायंति, थावरकाय़ाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्र्ज्जति, तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति, तेसिं च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ - सवायं - वाद सहित, एगपाणाइवाय विरए एक प्राणातिपात से विरत प्राणी 'को नहीं मारने का त्याग, णिक्खित्ते निक्षिप्त । भावार्थ - उदक पेढालपुत्र भगवान् गौतम स्वामी से अपने प्रश्न को दूसरे प्रकार से पूछता है वह कहता है कि - हे आयुष्मन् गौतम ! ऐसा एक भी पर्य्याय नहीं है जिसके घात का त्याग श्रावक कर १९७ Jain Education International - सकता है क्योंकि प्राणी परिवर्तनशील हैं वे सदा एक ही काय में नहीं रहते हैं वे कभी त्रस और कभी स्थावर इस प्रकार बदलते रहते हैं अतः जीव सब के सब त्रस प्राणी त्रस पर्य्याय को छोड़ कर स्थावर काय में उत्पन्न हो जाते हैं उस समय एक भी त्रस प्राणी नहीं रहता है जिसके घात के त्याग को श्रावक पालन कर सके किन्तु उस समय श्रावक का व्रत निर्विषय हो जाता है । जैसे किसी ने यह व्रत ग्रहण किया कि - "मैं नगरवासी मनुष्य को नहीं मारूंगा" परन्तु दैवयोग से नगर का उजाड़ हो गया और सब के सब नगरवासी नगर छोड़ कर वनवासी हो गये तो उस समय जैसे नगर वासी को न मारने की प्रतिज्ञा करने वाले उस पुरुष की प्रतिज्ञा निर्विषय हो जाती है उसी तरह त्रस को न मारने की प्रतिज्ञा करने वाले श्रावक की प्रतिज्ञा भी जब त्रस प्राणी सब के सब स्थावर हो जाते हैं उस समय निर्विषय हो जाती है इसका क्या समाधान ? सवायं भगवं गोगमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी- णो खलु आउसो ! अम्हाणं वत्तव्वएणं तुब्भं चैव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परिबाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते भवइ, कस्स णं तं हे ?, संसारिया खलु पाणा, तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तंसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्र्ज्जति, तेसिं च णं तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अघत्तं, ते पाणा वि वुच्छंति, ते तसा वि वुच्छंति, ते महाकांया ते चिरड़िया, ते बहुयरगा पाणा जेहिं समोवा सुपच्चक्खायं भवइ, ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ, से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जण्णं तुब्भे वा अण्णो For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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