Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ६
१७५
भिक्षुकों को प्रतिदिन भोजन कराता है वह असंयमी तथा रुधिर से भीगा हुआ हाथ वाला पुरुष इस लोक में साधु पुरुषों के निन्दा का पात्र होता है और परलोक में अनार्य पुरुषों की गति को प्राप्त करता है अतः तुमने जो दो हजार स्नातक भिक्षुओं को प्रतिदिन भोजन कराने से उत्तम गति की प्राप्ति कही है वह सर्वथा मिथ्या है ॥ ३६ ॥
थूलं उरब्भं इह मारियाणं, उद्दिष्टुभत्तं च पगप्पएत्ता । तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता, सपिप्पलीयं पगरंति मंसं॥ ३७॥
कठिन शब्दार्थ - थूलं - स्थूल-मोटे शरीर वाला,उरब्भं - उरभ्र-भेड़ को, उहिट्ठभत्तं-उद्दिष्टभक्तमुनियों के निमित्त बनाया हुआ आहार आदि।
भावार्थ - इस बौद्धमत को मानने वाले पुरुष मोटे भेड़ को मारकर उसे बौद्ध भिक्षुकों के भोजन के लिए बनाकर उसे लवण और तेल के साथ पकाकर पिप्पल्ली आदि से उस मांस को वधारते हैं और उन बौद्ध भिक्षुओं को खिलाते हैं ॥३७ ॥
विवेचन - आर्द्रकुमार मुनि अब बौद्ध भिक्षुओं के आहार की रीति बताते हुए कहते हैं कि - बौद्ध धर्म को मानने वाले पुरुष बौद्ध भिक्षुओं के भोजनार्थ मोटे शरीर वाले भेडों को मारते हैं और उसके मांस को निकाल कर वे नमक तथा तेल में उसे पकाते है फिर पिप्पली आदि द्रव्यों से उसे वघार कर तैयार करते हैं। वह मांस बौद्ध भिक्षुओं के भोजन के योग्य समझा जाता है । यही इन भिक्षुओं की आहार की रीति है ॥ ३७ ॥ ___ तं भुंजमाणा पिसितं पभूतं, णो उवलिप्पामो वयं रएणं ।
इच्चेवमाहंसु अणजधम्मा, अणारिया बाल रसेसु गिद्धा॥ ३८॥
कठिन शब्दार्थ - पिसितं - मांस का,पभूतं - प्रचुर मात्रा में,उवलिप्पामो - लिप्त नहीं होते रएणं - कर्म रज से।
भावार्थ - अनार्यों का कार्य करने वाले, अनार्य अज्ञानी रस लोलुप वे बौद्ध भिक्षु यह कहते हैं के बहुत मांस खाते हुए भी हम लोग पाप से लिप्त नहीं होते हैं ॥ ३८ ॥
विवेचन - पूर्वगाथा में जिसका वर्णन किया गया है ऐसे मांस को खाने वाले, अनाय्यों का कार्य करने वाले ये बौद्ध भिक्षु कहते हैं कि - हम लोग खूब मांस का भक्षण करते हुए भी पाप के भागी नहीं होते हैं भला इससे बढ़कर दूसरा अज्ञान क्या हो सकता है ? अतः ये लोग अज्ञानी अनार्य और रस के लोलुप हैं त्यागी नहीं हैं अतः ऐसे लोगों को भोजन कराने से मनुष्य को किस प्रकार शुभ फल प्राप्त होगा? यह बुद्धिमानों को विचार करना चाहिये ॥ ३८ ॥
जे यावि भुंजति तहप्पगारं, सेवंति ते पावमजाणमाणा । मणं ण एवं कुसला करेंति, वायावि एसा बुइया उ मिच्छा॥३९॥
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