Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३
११३
जल का भेद है तथा शुद्ध जल भी अपकाय का ही भेद है। ये पूर्वोक्त अपकाय के जीव, अपनी उत्पत्ति के स्थान पर नानाविध त्रस और स्थावर प्राणियों के स्नेह का आहार करते हैं ये आहार करने वाले हैं अनाहारक नहीं हैं। ____ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा तसथावरजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउटुंति, ते जीवा तेसिं तसथावरजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेति पुडविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य.णं तेसिं तसथावरजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं॥५८॥
भावार्थ - वायु से उत्पन्न अप्काय के वर्णन के पश्चात् अप्काय से ही उत्पन्न अप्काय का वर्णन किया जाता है। इस जगत् में कितनेक जीव अपने पूर्वकृत कर्म के प्रभाव से अप्काय में ही दूसरे अप्काय रूप से उत्पन्न होते हैं। वे प्राणी जिन त्रस और स्थावरयोनिक उदकों से उत्पन्न होते हैं उन्हीं के स्नेह का आहार करते हैं तथा वे पृथिवीकाय आदि का भी आहार करते हैं। इनके नाना वर्ण वाले दूसरे शरीर भी कहे गये हैं। : अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा उदगजोणिएस उदएस उदगत्ताए विउटृति, ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा उदगजोणिएसु उदएसु . तसपाणत्ताए विउटुंति, ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं उदगजोणियाणं तसपाणाणं सरीराणाणावण्णा जावमक्खायं ।।५९॥
भावार्थ - इसके पश्चात् श्री तीर्थङ्कर देव ने अप्योनिक अप्काय का स्वरूप पहले वर्णन किया था। इस जगत् में कितनेक जीव उदकयोनिक उदक में अपने पूर्व कृत कर्म के अधीन होकर आते हैं। वे उदक योनिक उदक रूप से उत्पन्न होते हैं। वे जीव उन उदकयोनिक उदकों के स्नेह का आहार करते हैं वे जीव पृथिवी काय आदि का भी आहार करते हैं और उन्हें अपने रूप में परिणत कर लेते हैं। उन उदक योनि वाले उदकों के दूसरे भी नाना वर्ण वाले सरीर कहे गये हैं। इसके पश्चात् श्री तीर्थङ्कर देव ने उदकयोनिक त्रस काय का वर्णन पहले किया था। इस जगत् में कितनेक जीव अपने पूर्व कृत
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