Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ४
भावार्थ - शिष्य के प्रश्न का उत्तर देता हुआ आचार्य कहता है कि गाथापति और उसके पुत्र तथा राजा और राजपुरुष के वध की इच्छा करता हुआ वह घातक पुरुष यद्यपि अवसर न मिलने से उनका घात नहीं करता है तथापि वह दिन, रात, सोते और जागते हर समय उनके वध का भाव रखता है अतः वह जैसे गाथापति आदि का बैरी है इसी तरह अप्रत्याख्यानी प्राणी भी समस्त प्राणियों के प्रति शठता पूर्ण हिंसामय भाव रखते हैं इसलिए वे अहिंसक या पाप न करने वाले नहीं कहे जा सकते हैं। बात यह है कि जिन प्राणियों का मन राग द्वेष पूर्ण और अज्ञान से ढका हुआ है वे सभी दूसरे प्राणियों के प्रति दूषित भाव रखते हैं क्योंकि एक मात्र विरति ही भाव को शुद्ध करने वाली है वह जिनमें नहीं हैं वे प्राणी सभी प्राणियों के भाव से बैरी हैं। जिनके घात का अवसर उन्हें नहीं मिलता है। उनका घात उनसे न होने पर भी वे उनके अघातक नहीं हैं। अतः उपर्युक्त साधनों के अभाव से ही अप्रत्याख्यानी तथा विकलेन्द्रिय आदि जीव चाहे दूसरे प्राणियों का घात न करें परन्तु उनमें घात करने का भाव तो बना ही करता है । इसलिये पहले जो कहा गया है कि जिस प्राणी ने पाप का प्रतिघात और प्रत्याख्यान नहीं किया है वह चाहे स्पष्ट विज्ञान से हीन भी क्यों न हो पाप कर्म करता ही है सो सर्वथा सत्य है ।। ६४ ॥
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णो इणट्ठे समट्ठे [ चोयए ] इह खलु बहवे पाणा० जे इमेणं सरीरसमुस्सएणं णो दिट्ठा वा सुया वाणाभिमया वा विण्णाया वा जेसिं णो पत्तेयं पत्तेयं चित्तसमायाए दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसढविउवायचित्तदंडे तंज़हा पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले ।। ६५ ॥
कठिन शब्दार्थ - सरीरसमुस्सएणं शरीर समुच्छ्रय- शरीर प्रमाण, ण- नहीं, अभिमया अभिमत-ज्ञात ।
भावार्थ - प्रश्नकर्ता कहता है कि आपके कथन से सिद्ध होता है कि सभी प्राणी सभी के शत्रु हैं परन्तु यह बात युक्तियुक्त नहीं है क्योंकि हिंसा का भाव परिचित व्यक्तियों पर ही होता है अपरिचित व्यक्तियों पर नहीं। संसार में सूक्ष्म, बादर, पर्य्याप्त और अपर्य्याप्त अनन्त प्राणी ऐसे हैं जो देशकाल और स्वभाव से अत्यन्त दूरवर्ती हैं। वे इतने सूक्ष्म और दूर हैं कि हमारे जैसे अर्वाग्दर्शी (छद्मस्थ) पुरुषों ने उन्हें न तो कभी देखा है और न सुना है वे किसी के न तो बैरी हैं और न मित्र हैं फिर उनके प्रति किसी का हिंसामय भाव होना किस प्रकार संभव है ? अतः सम्पूर्ण प्राणी सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति हिंसा का भाव रखते हैं यह कथन युक्ति युक्त नहीं है ।। ६५ ॥
आयरिय आह- तत्थ खलु भगवया दुवे दिट्ठता पण्णत्ता, तंजहा-सण्णिदिट्टंते य असण्णिदिट्टंते य, से किं तं सण्णिदिट्टंते ?, जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा एएसि णं छजीवणिकाएं पडुच्च तंजहा- पुढवीकायं जाव तसकार्य, से एगइओ पुढवीकारणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि, तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं पुढवीकारणं किच्चं
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