Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ .
१०७
अहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं जलयराणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहामच्छाणं जाव सुसुमाराणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडा तहेव जाव तओ एगदेसेणं ओयमाहारेंति, आणुपुव्वेणं हा पलिपागमणुपवण्णा तओ कायाओ अभिणिवट्टमाणा अंडं वेगया जणयंति पोयं वेगया जणयंति, से अंडे उभिजमाणे इत्थिं वेगया जणयंति पुरिसं वेगया जणयति णपुंसगं वेगया जणयंति ते जीवा डहरा समाणा आउसिणेहमाहारेंति आणुपुव्वेणं वुड्डा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे, ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं णाणाविहाणं जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छाणं सुसुमाराणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं ॥ ... कठिन शब्दार्थ - पोयं - पोत, उब्भिजमाणे - फूटने पर। . भावार्थ - अब तिर्यञ्च जीवों का स्वरूप बताया जाता है। उनमें इस सूत्र के द्वारा जलचर प्राणी बताये जाते हैं । मत्स्य, कच्छप, मकर और ग्राह आदि जलचर पञ्चेन्द्रिय जीव हैं । ये जीव अपने पूर्वकृत कर्म का फल भोगने के लिये जलचर तिर्यञ्च योनि में जन्म धारण करते हैं। जैसे मनुष्य अपने बीज और अवकाश के अनुसार जन्म धारण करते हैं इसी तरह जलचर प्राणी भी अपने अपने उपयुक्त बीज और अवकाश के अनुसार ही जन्म धारण करते हैं । वे प्राणी गर्भ में आकर अपनी माता के ... आहारांश का आहार करते हैं । वे गर्भ से निकल कर पहले जल के स्नेह का आहार करते हैं और पीछे बड़े होने पर वनस्पतिकाय का तथा अन्य त्रस और स्थावर प्राणियों का आहार करते हैं । ये जलचर जीव पञ्चेन्द्रिय प्राणियों का भी आहार करते हैं । वाल्मीकीय रामायण में लिखा है कि - "अस्ति मत्स्यस्तिमि म शतयोजनविस्तरः तिमिगिलगिलोऽप्यस्ति तगिलोऽप्यस्ति राघव!" अर्थात् हे रामचन्द्र! सौ यौजन तक का लम्बा एक 'तिमि' नामक मत्स्य होता है और उसको निगल जाने वाला एक और मत्स्य होता है उसको 'तिमिंगिल' कहते हैं । उस तिमिगिल को भी निगल जाने वाला एक दूसरा मत्स्य होता है जिसे 'तिमिंगिलगिल' कहते हैं । उसको भी निगल जाने वाला एक सब से बड़ा मत्स्य भी होता है । जैसे मनुष्य योनि में स्त्री पुरुष और नपुंसक ये तीन भेद होते हैं इसी तरह जलचरों में भी होते हैं । जलचर जीव कीचड़ का भी आहार करते हैं और उसे पचाकर अपने शरीर में परिणत कर लेते हैं । ये जीव अपने पूर्वकृत कर्म का फल भोगने के लिये जलचर योनि में उत्पन्न होते हैं यह जानना चाहिये । ___ अहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं चउप्पय-थलयरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं, तंजहा-एगखुराणं दुखुराणं गंडीपयाणं सणफयाणं, तेसिं च णं अहाबीएणं
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