Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
भावार्थ - इस पाठ में आकाशचारी पक्षियों के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है । चर्मकीट और वल्गुली आदि पक्षी, चर्मपक्षी कहलाते हैं और राजहंस, सारस, तथा काक और बक आदि रोम पक्षी कहे जाते हैं एवं अढाई द्वीप से बाहर के पक्षी समुद्ग पक्षी और वितत पक्षी कहलाते हैं । ये पक्षी अपनी उत्पत्ति योग्य बीज और अवकाश के द्वारा ही उत्पन्न होते हैं अन्यथा नहीं । पक्षी जाति की स्त्री अपने अण्डे को अपने पक्षों से ढककर बैठती है और ऐसा कर के वह अपने शरीर की गर्मी को उस अण्डे में प्रवेश कराती है, उस गर्मी का आहार करके वह अण्डा वृद्धि को प्राप्त होता है और वह कलल अवस्था को छोड़कर चोंच आदि अवयवों में परिणत हो जाता है । जब सब अङ्ग पूरे हो जाते हैं तब वह अण्डा फूट कर दो भागों में हो जाता है । इसके पश्चात् उसमें से निकला हुआ बच्चा माता के द्वारा दिये हुए आहार को खाकर वृद्धि को प्राप्त करता है। शेष बातें पूर्ववत् जान लेनी चाहिये। यहां तक मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय तिर्य्यञ्चों के आहार की व्याख्या की गई है । विशेष बात यह है कि- -इनका आहार दो प्रकार का होता है एक आभोग से और दूसरा अनाभोग से । अनाभोग से होने वाला आहार तो प्रतिक्षण होता रहता है परन्तु आभोग से होने वाला आहार क्षुधावेदनीय के उदय होने पर ही होता है, अन्य समय में नहीं ।। ५७॥
विवेचन - पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों की उत्पत्ति, स्थिति संवृद्धि एवं आहार की प्रक्रिया - पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च के पांच भेद हैं। जलचर, स्थलचर, उरःपरिसर्प भुजपरिसर्प और खेचर । इन पांचों के प्रत्येक के कितनेक नाम शास्त्रकार ने बतलाये हैं। उनमें कितनेक प्रसिद्ध हैं और कितनेक अप्रसिद्ध हैं।
इन सबकी सारी प्रक्रिया प्रायः मनुष्यों की उत्पत्ति आदि की प्रक्रिया के समान हैं। अंतर इतना ही है कि .. प्रत्येक की उत्पत्ति अपने अपने बीज और अवकाश के अनुसार होती है तथा प्रथम आहार ग्रहण करने में अन्तर है वह इस प्रकार है - ... १. जलचर जीव सर्व प्रथम अप्काय का, स्नेह का आहार करते हैं, २. स्थलचर - मातापिता के स्नेह (ओज) का आहार करते हैं, ३. उरपरिसर्प - वायुकाय का, ४. भुज परिसर्प - वायुकाय का तथा ५. खेचर जीव माता के शरीर की गर्मी (स्निग्धता) का आहार करते हैं।
शेष सब प्रक्रिया मनुष्य के समान है। खेचर के चार भेद हैं- उनमें चर्म पक्षी और रोम पक्षी ये दो जाति के पक्षी अढाई द्वीप में मिलते हैं और अढाई द्वीप के बाहर चर्म पक्षी, रोम पक्षी, वितत पक्षी
और समुद्गक ये चारों प्रकार के पक्षी पाये जाते हैं। ___अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता णाणा-विहजोणिया णाणाविहसंभवा णाणाविहवुकमा तज्जोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहाणं तसथावराणं पोग्गलाणं सरीरसु वा सचित्तेसु वा अधित्तेसु वा अणुसूयत्ताए
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