Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
.. भावार्थ - इस दूसरे अध्ययन में तेरह क्रिया - स्थानों का सविस्तार वर्णन करके बारह क्रिया - स्थानों को संसार का कारण और तेरहवें क्रिया स्थान को कल्याण का कारण कहा है इसलिए जो पुरुष बारह क्रिया - स्थानों को छोड़ कर तेरहवें क्रिया - स्थान का सेवन करते हैं वे सब प्रकार के दुःखों का नाश करके परमानन्द रूप मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं । परन्तु जो अज्ञानी जीव महामोह के उदय से बारह क्रिया स्थानों का सेवन नहीं छोड़ते हैं वे सदा जन्म मरण के प्रवाह रूप संसार में पड़े हुए अनन्त काल तक दुःख के भाजन होते हैं । पूर्व समय में जिन भव्य जीवों ने तेरहवें क्रिया स्थान का आश्रय लिया है वे मुक्त हो गये हैं और बारह क्रिया स्थानों का आश्रय लेने वाले नहीं । इसलिए आत्मार्थी पुरुषों को चाहिये कि वे तेरहवें क्रिया स्थान का आश्रय लेकर अपनी आत्मा को संसार सागर से पार करने का प्रयत्न करें। तिबेमि-इति ब्रवीमि - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि - हे आयुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम से कहता हूं किन्तु अपनी मनीषिका (बुद्धि) से कुछ नहीं कहता हूँ।
विवेचन - इस दूसरे अध्ययन में तेरह क्रिया स्थानों का वर्णन किया गया है। इन में से बारह क्रिया स्थान तो मुमुक्षु जीव के लिये सर्वथा त्याज्य हैं। तेरहवां ईर्यापथ नाम का क्रिया स्थान ग्राह्य होने पर भी सिद्धान्तानुसार एवं भूत आदि शुद्ध नयों की अपेक्षा से त्याज्य है। तेरहवें क्रियास्थान में स्थित जीव की सिद्धि, मुक्ति या निर्वाण पाने की बात औपचारिक है क्योंकि वास्तव में देखा जाय तो जब तक योग रहते हैं (तेरहवें गुणस्थान तक) तब तक भले ही ईर्यापथ क्रिया हो जीव को मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है। इसीलिये यहाँ पर 'तेरहवें क्रिया स्थान वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं' इस कथन के पीछे शास्त्रकार का तात्पर्य यह है कि तेरहवां क्रियास्थान प्राप्त होने पर जीव को मुक्ति की प्राप्ति अवश्य हो जाती है। मोक्ष प्राप्ति में तेरहवां क्रिया स्थान उपकारक है। अर्थात् जिन्होंने बारह क्रिया स्थानों को छोड़कर तेरहवें क्रिया स्थान का आश्रय ले लिया वे एक दिन अवश्य ही सिद्ध, बुद्ध मुक्त यावत् सर्व दुःखान्तकृत बन जाते हैं। किन्तु बारह क्रिया स्थानों का आश्रय लेने वाले सिद्ध, बुद्ध यावत् सब दुःखों का अन्त करने वाले नहीं बनते हैं।
॥दूसरा अध्ययन समाप्त॥
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