Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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५८.
श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
नहीं करता है । रोजगार धन्धे आदि भी सब, सब को पसन्द नहीं पड़ते हैं अतएव कोई खेती करता है, कोई नौकरी करता है, कोई शिल्प करता है और कोई वाणिज्य आदि करता है । किसी का शुभ अध्यवसाय होता है और किसी का अशुभ होता है । जो पुरुष प्रबल पुण्य के उदय से उत्तमविवेक सम्पन्न है वह तो सांसारिक पदार्थों में आसक्त न रहने के कारण मिथ्याशास्त्रों का अध्ययन नहीं करता है परन्तु जो पुरुष काम भोग में आसक्त और परलोक की चिन्ता से रहित हैं वे सांसारिक भोग के साधनों की प्राप्ति तथा दूसरे का अनिष्ट करने के लिए नानाविध पापमय विद्याओं का अभ्यास करते हैं । यद्यपि इन पापमय विद्याओं के अध्ययन से वे इस लोक के पदार्थों को सुगमता से प्राप्त करके उनका उपभोग करते हैं तथापि उनका परलोक बिगड़ जाता है । आर्य जाति में जन्म लेकर भी जो पुरुष इन विद्याओं में आसक्त है उसे भाव से अनार्य समझना चाहिए । परलोक की चिन्ता को भूलकर जो केवल इस लोक के भोग साधनों को उत्पन्न करने वाली कपटप्राय विद्याओं में आसक्त हैं वे भ्रम में पड़े हैं । ये विद्यायें परलोक के प्रतिकूल है इसलिए जो इनका अभ्यास करते हैं वे मरने के पश्चात् असुर लोक में किल्विषी होते हैं । वहां की अवधि पूर्ण होने पर वे मनुष्य लोक में जन्म लेकर गूंगे और जन्मान्ध होते हैं अत: विवेकी पुरुष इन विद्याओं के अभ्यास से दूर रहते हैं।
विवेचन - ऊपर कितनी विद्याओं के नाम बतलाये गये हैं उनमें से कुछ विद्याओं के अर्थ कठिन शब्दार्थ में दे दिये गये हैं बाकी विद्याओं का अर्थ उनके शब्दों से ही प्रकट हो जाता है। ये सब पाप । विद्याएं हैं अतः मोक्षार्थी पुरुष को इन विद्याओं का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
से एगइओ आय-हेवा, णाय-हेडंवा, सयण-हेडंवा, अगार हेउं वा, परिवारहेडंवा, णायगंवा, सहवासियं वा, णिस्साए अदुवा अणुगामिए, १ अदुवा उवचरए २ अदुवा पडिपहिए ३ अदुवा संधि-छेदए ४ अदुवा गंठि-छेदए ५ अदुवा उरब्भिए ६ अदुवा सोवरिए ७ अदुवा वागुरिए ८ अदुवा साउणिए ९ अदुवा मच्छिए १० अदुवा गो-घायए ११ अदुवा गोवालए १२ अदुवा सोवणिए १३ अदुवा सोवणियंतिए॥१४॥
एगइओ आणुगामिय-भावं पडिसंधाय तमेव अणुगामियाणुगामियं हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपइत्ता, विलुंपइत्ता, उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ ।
से एगइओ उवचरय-भावं पडिसंधाय, तमेव उवचरियं हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपइत्ता, विलुंपइत्ता, उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ; इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ । - से एगइओ पाडिपहिय-भावं पडिसंधाय तमेव पाडिपहे ठिच्चा हंता, छेत्ता,
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