Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन २
७१
अधम्माणुया अधम्मिट्ठा अधम्मखाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइ अधम्मपलग्जणा अधम्मसील-समुदायारा अधम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरति ।
कठिन शब्दार्थ - महिच्छा - महान् इच्छा वाले, अधम्मिया- अधर्म करने वाले, अधम्माणुयाअधर्म के पीछे चलने वाले, अधम्मिट्ठा - अधर्म को अपना अभीष्ट मानने वाले, अधम्मक्खाई- अधर्म की चर्चा करने वाले, अधम्मपायजीविणो - अधर्ममय जीविका करने वाले, अधम्मपलोई - अधर्म को देखने वाले; अधम्म पलजणा - अधर्म में आसक्त, अधम्मसीलसमुदायारा - अधर्ममय स्वभाव और आचरण करने वाले ।
भावार्थ - इस पाठ के पूर्व पाठों में अधर्म, धर्म और मिश्र स्थानों का वर्णन किया है परन्तु यहां से इन स्थानों में रहने वाले पुरुषों का वर्णन आरम्भ होता है । उस में सब से पहले अधर्म स्थान में स्थित पुरुष का वर्णन इस पाठ के द्वारा किया जाता है । इस लोक में जो परुष गहस्थ का जीवन व्यतीत करते हुए विषय साधनों की प्राप्ति की बड़ी से बड़ी इच्छा रखते हैं अर्थात् सब से अधिक धन धान्य पशु परिवार और गृह आदि की इच्छा करते हैं तथा वाहन ऊंट घोड़ा गाड़ी नाव खेत और दास दासी बहुत अधिक रखते हुए उनके पालनार्थ महान् आरम्भ समारम्भ करते हैं तथा किसी भी आस्रव से निवृत्त न होकर सबका सेवन करते हैं एवं रात दिन अधर्म के कार्य में लगे हुए रह कर अधर्म की ही चर्चा करते रहते हैं। वे पुरुष प्रथम पक्ष अधर्म स्थान में स्थित हैं यह शास्त्रकार का आशय हैं ।
हण, छिंद, भिंद, विगत्तगा, लोहियपाणी, चंडा, रुद्दा, खुद्दा, साहस्सिया, उक्कुंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साइसंपओग-बहुला, दुस्सीला, दुव्वया, दुप्पडियाणंदा, असाहू, सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए जाव सव्वाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कोहाओ जाव मिच्छादसण-सल्लाओ अप्पडिविरया, सव्वाओ ण्हाणुम्महण-वण्णग-गंध-विलेवण-सहफरिस-रस-रूव-गन्धमल्लालंकाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए; सव्वाओ सगडरह-जाण-जुग्ग गिल्लिथिलि-सियासंदमाणिया-सयणासण-जाण वाहणभोग भोयणपवित्थर-विहिओ अप्पडिविरया जावज्जीवाएः सव्वाओ कय-विक्कय-मासद्धमासरूवग-संववहाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाएः सव्वाओ.हिरण्ण-सुवण्ण-धणधण्ण-मणि-मोत्तिय-संखसिल-प्पवालाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए; सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए; सव्वाओ आरंभ-समारंभाओ अप्पडिविरया जाव-ज्जीवाए; सव्वाओ करण-कारावणाओ अप्पडिविरया जावग्जीवाए; सव्वाओ पयण-पयावणाओ अप्पडिविरया जावग्जीवाए; सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण
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