Book Title: Suyagadanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन २
निकल कर दूसरे नरक में जाता है । उसे क्षण भर भी दुःख से मुक्ति नहीं मिलती है । यदि वह दैववश इस मनुष्य लोक में जन्म लेता है तो भी भयंकर नम्रता रहित चञ्चल और घमण्डी होता है।
विवेचन - ठाणाङ्ग सूत्र के आठवें ठाणे में मद (मान) के आठ भेद बतलाये गये हैं। यथा - जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपमद, श्रुतमद, लाभभद और ऐश्वर्य मद। इन आठ मदों से मान की उत्पत्ति होती है जिससे मानी आदमी अपने आप को सर्वश्रेष्ठ और ऊंचा समझता है और दूसरों को अपने से हीन तुच्छ गिनता है और उनकी अवज्ञा, निन्दा, अपमान, घृणा करता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वह लम्बे समय तक जन्म मरण के चक्र में परिभ्रमण करता हुआ दुःख पाता रहता है।
मानी अपने मान में, तुच्छ गिने संसार। ज्ञानी अपने ज्ञान में, उसे समझे निस्सार॥ ....
अहावरे दसमे किरिय-ट्ठाणे मित्त-दोस-वत्तिए त्ति आहिज्जइ । से जहा णामए केइ पुरिसे माईहिं वा, पिईहिं वा, भाईहिं वा, भइणीहिं वा, भग्जाहिं वा, धूयाहिं वा, पुत्तेहिं वा, सुहाहि वा, सद्धिं संवसमाणे तेसिं अण्णयरंसि अहा-लहुगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दंड णिवत्तेइ, तं जहा-सीओदग वियांसि वा कायं उच्छोलित्ता भवह, सिणोदग-वियडेण वा कार्य ओसिंचित्ता भवइ, अग्निकाएणं कायं उवडहित्ता भवह, जोरोण का, क्रोण वा, णेत्तेण वा, तयाइवा (कण्णण वा छियाए वा) लगाए वा, (अण्णवरेण वा दवरएण वा) पासाइं उहालित्ता भवइ, दंडेन वा, अट्ठीण वा, मुट्ठीण वा, लेलूण वा, कवालेण वा, कायं आउट्टित्ता भवइ । तहप्पगारे पुरिस-जाए संवसमाणे दुम्मणा भवइ, पवसमाणे सुमणा भवइ । तहप्पगारे पुरिसजाए दंड-पासी, दंड-गुरुए, दंड-पुरक्कडे, अहिए इमंसि लोगसि, अहिए परंसि लोगसि संजलणे कोहणे पिट्ठि-मंसी यावि भवइ। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजं ति आहिज्जहादसमे किरिय-ट्ठाणे मित्त-दोस-वत्तिए ति आहिए ॥२६॥
कठिन शब्दार्थ-मित्तदोसवत्तिए - मित्र दोष प्रत्ययिक, अहालहुगंसि अवराहसि-किसी छोटे से अपराध के हो जाने पर, गरुष- भारी, णिवत्तेइ - देता है, सीओदगवियसि - ठंडे जल में, उच्छोलित्ता - डालता (डूबोता) है, ओसिंचित्ता - सिंचन करता है, उदालिता - उधेड़ डालता है, लेलूण - ढेले से, कवालेण - कपाल से, दंडगरुए - भारी दंड देने वाला, देउपुरक्कडे - दंड को आगे रखने वाला, पिट्टिमंसि- चुगलखोर- परोक्ष में निंदा करने वाला।
भावार्थ - जगत् में कोई ऐसे पुरुष होते हैं जो थोड़े अपराध में महान् दण्ड देते हैं। माता, पिता, भाई, भगिनी, स्त्री, पुत्र, पुत्रवधू तथा कन्या के द्वारा थोड़ा अपराध होने पर भी वे उन्हें महान् दण्ड देते
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