Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तामां ज अतरे छे. कारण ? सर्व अध्ययनो स्वसमयरूप होवाथी. भाष्यकारे कयुं छे के- परसमओ उभयं वा, सम्मदिदिस्त समओ जेणं। ता सव्वज्झयणाई,ससमयवत्तव्यनिययाई॥१६॥ परसमय अने उभय( स्वयर )समय, ते सम्यग्दष्टिने स्वसमय ज छे, कारण के ते सम्यग्दष्टि तेनो यथार्थ विषयविभाग करे छे. जो के केटलाएक अध्ययनोमां परसमय अने उभयसमयनी वक्तव्यता संभळाय छे, तो पण सम्यग्दष्टिए ग्रहण करेल होवाथी सर्व अध्ययनो स्वसमय वक्तव्यतामां नियत छे. तथा अर्थाधिकार वक्तव्यता विशेष ज छे, ते एकत्व विशिष्ट आत्मादि पदार्थना कथन लक्षगरूप छे. प्रत्येक द्वारमा अंगीकृत अध्ययन समवतार लक्षणरूप छे ते लाघव माटे अनुपूर्वी अदि द्वारोमा वर्णन करेल होवाथी पुनः अहिं कहेता नथी. वळी पण कर्बु छ केअहुणा य समोयारो, जेण समोयारियं पइद्दारं। एगट्ठाणमणुगओ,सो लाघवओ ण पुण वच्चो ॥१७॥ आ गाथानो भावार्थ उपरोक्त छे. १ ओघनिष्पन्न, २ नामनिष्पन्न, ३ सूत्रालापकनिधन भेदथी त्रण प्रकारे निक्षेप कराय छे. कयुं छे केभण्णइ घेप्पइ य सुहं, निक्खेवपयाणुसारओ सत्थं। ओहो नाम सुत्तं, निखेत्तव्वं तओऽवस्सं ॥१८॥ निक्षेप पदना अनुसारथी अध्ययन वा उद्देशक सुखपूर्वक भणाय छे अने ग्रहण कराय छे, ते कारणथी १ ओघ, २ नाम अने ३ सूत्रालापकनिष्पन्न आ त्रणे अवश्य निक्षेप करवा योग्य छे. तेमां ओघनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे छे For Private and Personal Use Only

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