Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 404 // पर्वततद्देवलवण-चन्द्र नामान्येव, ते तु सर्वाङ्गोपाङ्गसुन्दरा दर्शने मनोरमाः स्वरूपतो, नैकोरुकादय एवेति, तथा एतेभ्य एव चत्वारि योजन- चतुर्थमध्ययन चतु:स्थानम्, शतान्यवगाह्य प्रतिविदिक्चतुर्योजनशतायामविष्कम्भा द्वितीयाश्चत्वार एव, एवं येषां यावदन्तरं तेषांतावदेवायामविष्कम्भ द्वितीयोद्देशकः प्रमाणंयावत्सप्तमानांनवशतान्यन्तरंतावदेव च तत्प्रमाणमिति, सर्वेऽप्यष्टाविंशतिरेते, एतन्मनुष्यास्तु युग्मप्रसवाः पल्योपमा- |303-306 जम्बूद्वीपसङ्ख्येयभागायुषोऽष्टधनुःशतोच्चाः, तथैरावतक्षेत्रविभागकारिणः शिखरिणोऽप्येवमेव पूर्वोत्तरादिविदिक्षुक्रमेणैतन्नामिकै- द्वारतदधिपाः, अन्तरद्वीपाः वान्तरद्वीपानामष्टाविंशतिरिति, अन्तरद्वीपप्रकरणार्थसङ्ग्रहगाथा:-चुल्लहिमवंत पुव्वावरेण विदिसासु सागरं तिसए। गंतूणंतरदीवा |18, पाताल कलशतदधितिन्नि सए होंति विच्छिन्ना॥१॥ अउणावन्ननवसए किंचूणे परिहि तेसिमे नामा। एगूरुगआभासिय वेसाणी चेव नंगूली॥२॥ एएसिंह पाऽवासदीवाणं परओ चत्तारि जोयणसयाई। ओगाहिऊण लवणं सपडिदिसिं चउसयपमाणा // 3 // चत्तारंतरदीवा हयगयगोकन्नसंकुलीकण्णा। सूर्य-नक्षत्रएवं पंचसयाई छसत्तअढेव नव चेव॥४॥ ओगाहिऊण लवणं विक्खंभोगाहसरिसया भणिया। चउरो चउरो दीवा इमेहिं णामेहि ग्रह-द्वारतद।णेयवा // 5 // आयंसगमेंढमुहा अओमुहा गोमुहा य चउरेते। अस्समुहा हत्थिमुहा सीहमुहा चेव वग्घमुहा॥६॥ तत्तो अ अस्सकन्ना हत्थियकन्ना अकन्नपाउरणा / उक्कामुहमेहमुहा विजुमुहा विजुदंता य॥७॥घणदंत लट्ठदंता निगूढदंता य सुद्धदंता यावासहरे सिहरमिवि (अन्तरद्वीपक्षुल्लहिमवत्पूर्वापरयोर्विदिक्षु त्रिशतीं सागरम् / गत्वा द्वीपास्त्रिशतविस्तीर्णा भवन्ति // 1 // एकोनपञ्चाशदधिकं नवशतं किंचिदूनं परिधिस्तेषामिमानि नामानि / Bएकोरुक आभाषिको विषाणी लाली चैव॥ 2 // एतेषां द्वीपानां परतश्चत्वारि योजनशतानि / अवगाह्य लवणं सप्रतिदिशि चतुःशतप्रमाणाः॥ 3 // चत्वारोऽन्तीपा हयगजगोकर्णशष्कुलीकर्णाः / एते पञ्चशतानि षट्सप्ताष्ट नव चैव // 4 // *लवणमवगाह्य विष्कम्भावगाहसदृशा भणिताः / चत्वारश्चत्वारो द्वीपा इमैर्नामभिर्ज्ञातव्याः॥ B5 // आदर्शकमेण्ढमुखायोमुखा गोमुखश्च चत्वार एते / अश्वमुखो हस्तिमुखः सिंहमुखश्चैव व्याघ्रमुखः॥ 6 // ततश्चाश्वकर्णो हस्तिकर्णाकर्णकर्णप्रावरणाः / उल्कामुखो मेघमुखो विद्युन्मुखो विद्युद्दन्तश्च / / 7 / / घनदन्तो लष्टदन्तो निगूढदन्तश्च शुद्धदन्तश्च / शिखरिण्यपि वर्षधरे - धिपाः,धातकीविष्कम्भाज्जम्बूद्वीपभरतादानि, पातालकलशवलन्धर वक्तव्यता) 8 // 404 //
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