Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 499 // वग्रहाद्य लगित इति, भवन्ति चात्र गाथाः- हास १प्पदोस 2 वीमंसओ 3 विमायाय 4 वा भवे दिव्वो। एवं चिय माणुस्सो कुसीलपडिसेवण चतुर्थमध्ययनं चतुःस्थानम्, चउत्थो॥१॥ तिरिओ भय 1 प्पओसा 2 हारा 3 ऽवच्चादिरक्खणत्थं वा 4 / घट्टण 1 थंभण 2 पवडण 3 लेसणओ वाऽऽयसंचेओ चतुर्थीद्देशकः 4 // 2 // दिव्वंमि वंतरी 1 संगमे 2 गजइ 3 लोभणादीया 4 (इत्युत्तरार्द्ध), गणिया 1 सोमिल 2 धम्मोवएसणे 3 सालुजोसियाईया 4 / / सूत्रम् 362-365 तिरियमि साण 1 कोसिय 2 सीहा अचिरसूवियगवाई॥३॥ कणुग 1 कुडणा 2 भिपयणाइ 3 गत्तसंलेसणादओ४ नेया। आओदाहरणा शुभादि प्रकृत्यादिच वाय 1 पित्त 2 कफ 3 सन्निवाया व (विशेषाव० 3006-7) ति॥४॥ उपसर्गसहनात् कर्मक्षयो भवतीति कर्मस्वरूपप्रति कर्मणः, संघभेदाः, पादनायाह औत्पत्तिक्यचउव्विहे कम्मे पं० तं०- सुभे नाममेगे सुभे सुभे नाममेगे असुभे असुभे नाम 4, 1, चउविहे कम्मे पं० तं०- सुभे नाममेगे लंजरोदकादि समाना बुद्धिः, सुभविवागे सुभेणाममेगे असुभविवागे असुभे नाममेगे सुभविवागे असुभे नाममेगे असुभविवागे 4, 2, चउव्विहे कम्मे पं० तं०पगडीकम्मे ठितीकम्मे अणुभावकम्मे पदेसकम्मे 4, 3, // सूत्रम् 362 // स्त्रीवेदादि चक्षुर्दर्शन्याचउव्विहे संघे पं० तं०-समणा समणीओ सावगा सावियाओ॥सूत्रम् 363 // दिसयतादि भेदा जीवाः, चउव्विहा बुद्धी पं० तं०- उप्पत्तिता वेणतिता कम्मिया पारिणामिया, चउव्विधा मई पं० तं०- उग्गहमती ईहामती अवायमई (साधु श्रावकयोः __धारणामती, अथवा चउव्विहा मती पं० सं०- अरंजरोदगसमाणा वियरोदयसमाणा सरोदगसमाणासागरोदगसमाणा॥सूत्रम् 364 // बुद्धीनांच स्वरूपम्) हास्यात्प्रद्वेषाद्विमर्शाद्विमात्रातो वा भवेद्दिव्यः / एवमेव मानुष्यः कुशीलप्रतिषेवनाचतुर्थः // 1 // तैरश्चो भयात्प्रद्वेषादाहारादपत्यरक्षणार्थं वा / घट्टनस्तम्भनप्रपतनसंलेषणतो वाऽऽत्मसंवेदः। दिव्ये व्यन्तरी संगम एकयतिलोभन्यादिका (क्षोभणादिकाः)। मानुष्ये गणिकासोमिलधर्मोपदेशकेालुयोषिदादयः / / तैरश्चीने श्वकौशिकसिंहाचिरप्रसूतगवादिकाः / कणकुट्टनाभिपतनगर्तासलेषणादयो ज्ञेयाः॥ आत्मोदाहरणानि वातपित्तकफसन्निवाता वा / नाकादिमनोयोग्यादि // 499 //
Loading... Page Navigation 1 ... 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538