Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 495
________________ चतुर्थमध्ययन श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 471 // वणपरिमासीवि 1, चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०- वणकरे नाममेगेणो वणसारक्खी 4, 2, चत्तारि पुरिसजाया पं० सं०- वणकरे नामं एगे णो वणसरोही 4, 3, चत्तारि वणा पं० तं०- अंतोसल्ले नाममेगे णो बाहिंसल्ले 4, 1, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०- चतु:स्थानम्, चतुर्थोद्देशकः अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले 4, 2, चत्तारि वणा पं० त०- अंतो दुढे नाम एगे णो बाहिं दुढे बाहिं दुढे नाम एगे नो अंतो 4, 3, सूत्रम् एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०- अंतो दुढेनाममेगे नो बाहिं दुढे 4, 4, चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०- सेतंसे णाममेगे सेयंसे सेयंसे |343-344 व्याधिनाममेगे पावंसे पावंसे णाम एगे सेयंसे पावंसे णाममेगे पावंसे, 1, चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-सेतंसे णाममेगे सेतंसेत्ति सालिसए चिकित्से, सेतसे णाममेगे पावंसेत्ति सालिसते 4, 2, चत्तारि पुरिसा पं० तं०- सेतंसेत्ति णाममेगे सेतंसेत्ति मण्णति सेतंसेत्ति णाममेगे पावंसेत्ति चिकित्सकमण्णति 4, 3, चत्तारि पुरिसजाता पं० 20 सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्ति सालिसते मन्नति सेतसे णाममेगे पावंसेत्ति सालिसते मण्णति 4, चतुर्भङ्गी आत्मपर४, चत्तारि पुरिसजाता पं० तं०- आघवतित्ता णाममेगे णो परिभावतित्ता परिभावइत्ता णाममेगे णो आघवतित्ता 4, 5, चत्तारि चिकित्सादिपुरिसजाया पं० तं०-आघवतित्ताणाममेगेनोउंछजीविसंपन्ने उंछजीविसंपन्नेणाममेगेणो आघवइत्ता 4,6, चउव्विहारुक्खविगुवणा चतुर्भङ्गयः पं० तं०- पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए। सूत्रम् 344 // चउविहेइत्यादि कण्ठ्यम्, केवलं वातो निदानमस्येति वातिकः, एवं सर्वत्र नवरं सन्निपातः- संयोगो द्वयोस्त्रयाणां वेति, वातादिस्वरूपं चैतत्-तत्र रूक्षो 1 लघुः 2 शीतः 3 खरः 4 सूक्ष्म 5 श्वलो ६ऽनिलः / पित्तं सस्नेह 1 तीक्ष्णो २ष्णं 3 लघु 4 विश्रं 5 सरं 6 द्रवम् ७॥१॥कफो गुरु 1 हिमः 2 स्निग्धः 3 प्रक्लेदी 4 स्थिर: 5 पिच्छिलः 6 / सन्निपातस्तु सङ्कीर्णलक्षणो द्व्यादिमीलकः / // 2 // वातादीनां कार्याणि पुनरिमानि-पारुष्यसङ्कोचनतोदशूलश्यामत्वमङ्गव्यथचेष्टभङ्गाः। सुप्तत्वशीतत्वखरत्वशोषाः, कर्माणि / वायोः प्रवदन्ति तज्ज्ञाः॥१॥परिस्रवस्वेदविदाहरागा, वैगन्ध्यसङ्क्लेदविपाककोपाः। प्रलापमूच्छभ्रिमिपीतभावाः, पित्तस्य कर्माणि // 471 //

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