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की ५ उत्तर प्रकृतियों का उल्लेख है।४६ इससे यह तो स्पष्ट है कि मतिज्ञानावरण कर्मप्रकृति ई०पू० में ही अपने अस्तित्व में आ गयी थी, क्योंकि विद्वानों ने उत्तराध्ययन का काल ई०पू० तीसरी शताब्दी माना है। एकमात्र उत्तराध्ययन के ३३वें अध्याय को लेकर विद्वानों में मतभेद है फिर भी यह अध्याय ई०पू० का ही माना जाता है। उत्तराध्ययन के अतिरिक्त आगमों में मति शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम भगवती में मिलता है, जो ज्ञान और बुद्धि दोनों अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। इनके अतिरिक्त आचारांग,४८ सूत्रकृतांग ९ आदि में की मति शब्द आये हैं, किन्तु वे वहाँ बुद्धि के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। अत: यहाँ उत्तराध्ययन के आधार पर मतिज्ञान की प्राचीनता स्पष्ट हो जाती है, किन्तु राजप्रश्नीय में श्रमण केशीकुमार जो पार्श्व की परम्परा के थे, के मुख से यह कहलवाना कि मुझे आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान प्राप्त हैं, आभिनिबोधिक ज्ञान के प्रचलन की प्राचीनता को दर्शाता है।
मतिज्ञान मुख्यत: दो प्रकार का है, जैसाकि परिभाषा से ही परिलक्षित होता है। पहला प्रकार इन्द्रियजन्य ज्ञान का है तथा दूसरा प्रकार मनोजन्य (अनिन्द्रियजन्य) ज्ञान का। किन्तु भेद की दृष्टि से प्रत्येक इन्द्रियजन्य और मनोजन्य मतिज्ञान के चार-चार भेद होते हैं अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। दिगम्बर परम्परा में मतिज्ञान के भेद-प्रभेद कई दृष्टियों से बताये गये हैं। जैसे पञ्चास्तिकाय तात्पर्यवृत्ति में मतिज्ञान के तीन प्रकारों का उल्लेख है- उपलब्धि, भावना और उपयोग।५० इसी प्रकार तत्त्वार्थसार में स्वसंवेदन ज्ञान, इन्द्रियज्ञान, स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, स्वार्थानुमान, बुद्धि, मेधा आदि को मतिज्ञान का प्रकार बताया गया है।५१ स्वसंवेदन का भावार्थ बताते हए पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने लिखा है- शरीर के भीतर रहने वाला ज्ञान-दर्शन लक्षण से युक्त 'मैं' एक पृथक् पदार्थ हूँ, ऐसा जो अपने-आप ज्ञान होता है, उसे स्वसंवेदन कहते हैं। यहाँ पं. पन्नालाल जी का कथन विचारणीय है- इस सन्दर्भ में कि ज्ञान-दर्शन लक्षण से युक्त 'मैं' ही आत्मा है और आत्मा से होनेवाला ज्ञान प्रत्यक्ष है, परोक्ष नहीं। जबकि मतिज्ञान परोक्षज्ञान है। इसी प्रकार स्मरण, मेधा आदि मति के पर्यायवाची माने जा सकते हैं, भेद नहीं। मतिज्ञान के प्रकारों को विश्लेषित करने से पूर्व सारिणी के रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है
मतिज्ञान
अवग्रह
इहा
अवाय
धारणा
व्यंजनावग्रह
अर्थावग्रह
(प्रत्येक के छ:-छ: भेद)
स्पर्शेन्द्रिय रसेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय
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