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"२१वीं शती में मार्क्सवाद" नामक विषय पर एक परिसंवाद आयोजित किया गया। इसमें मार्क्सवाद और जैनधर्म की समानताओं व असमानताओं की भी विस्तृत चर्चा हुई। ६ मई को श्वेताम्बर जैन मन्दिर भेलूपुर में प्रातःकाल आचार्यश्री राजयशसरि जी के ५६वें जन्मदिवस के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सभी विद्वानों को शाल, श्रीफल, पुष्पं-पत्रं से सम्मानित किया गया। विद्यापीठ के निदेशक द्वारा आचार्यश्री के सम्मान में पार्श्वनाथ विद्यापीठ और श्वेताम्बर जैन समाज, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में उन्हें एक अभिनन्दन-पत्र भेंट किया गया। दिनांक ७ मई को आचार्यश्री का दिगम्बर जैन मन्दिर में भी जन्मोत्सव मनाया गया। इस कार्यक्रम में भी निदेशक महोदय ने दिगम्बर समाज की ओर से आचार्यश्री को अभिनन्दन-पत्र भेंट किया।
दिनांक १३ मई को कबीर मठ, वाराणसी में विशाल स्तर पर कबीर जयन्ती महोत्सव का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता विख्यात् कानूनविद् डॉ० लक्ष्मीमल सिंघवी ने की। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री विष्णुकान्त शास्त्री और उत्तरप्रदेश के राज्यपाल श्री सूरजभान इस समारोह में उपस्थित थे। विद्यापीठ के निदेशक भी इस समारोह में आमन्त्रित रहे। इस अवसर पर उन्होंने डॉ० सिंघवी से विद्यापीठ के विकास एवं इसे मान्य विश्वविद्यालय बनाने के सम्बन्ध में विचार-विमर्श किया। इस सन्दर्भ में डॉ० सिंघवी ने विद्यापीठ को पूर्ण सहयोग प्रदान करने की बात कही।
१४ मई को विद्यापीठ में आचार्यश्री के सान्निध्य में पार्श्वनाथ विद्यापीठ एवं पार्श्वनाथ मन्दिर जीर्णोद्धार ट्रस्ट, वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में आदर्शपरिवार की परिकल्पना : धर्मशास्त्रों के परिप्रेक्ष्य में नामक संगोष्ठी आयोजित की गयी। इस अवसर पर जैनविद्या के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले २४ विद्वानों का सम्मान भी किया गया। १५ मई को आचार्यश्री के साथ विद्यापीठ के निदेशक ने विस्तार से संस्थान के विकास की भावी योजनाओं पर चर्चा की। आचार्यश्री ने संस्थान को विविध प्रकार से सहयोग देने का वचन दिया और इस सम्बन्ध में एक प्रारूप भी तैयार कर उन्होंने प्रबन्ध समिति के पास विचारार्थ प्रेषित कर दिया।
१८ मई को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में २१वीं शती और बौद्धधर्म पर हुई संगोष्ठी में निदेशक महोदय ने भाग लिया। इसी दिन वे नागार्जुन बौद्धप्रतिष्ठान द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय संगोष्ठी में भाग लेने गोरखपुर गये जहां संस्कृत साहित्य में बौद्धाचार्यों का योगदान नामक विषय के अन्तर्गत बौद्धसाहित्य में ओम की अवधारणा नामक अपने शोधपत्र का वाचन किया और एक सत्र की अध्यक्षता भी की। यह संगोष्ठी संस्कृत वर्ष २००० के उपलक्ष्य में आयोजित की . गयी थी।
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