Book Title: Sramana 2000 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 217
________________ २०८ महावीर जिनालय, एफ० ब्लाक, प्रीतविहार, दिल्ली ९२, प्रथम संस्करण, आकाररायल अठपेजी, पक्की जिल्द, पृष्ठ १४+९७+६२५, अनेक यंत्र-चित्रादि सहित, मूल्य २००/- रुपये। दिगम्बर जैन समाज में बहुत समय से सर्वमान्य प्रतिष्ठापाठ तैयार करने की आवश्यकता रही है जिसके परिणामस्वरूप पं० नाथूलाल जी शास्त्री ने प्रतिष्ठाप्रदीप नामक ग्रन्थ की रचना की। इसी क्रम में पं० गुलाबचन्द्र जी 'पुष्प' द्वारा तैयार की गयी प्रस्तुत पुस्तक है। यह १५ परिच्छेदों में विभक्त है। इनके अन्तर्गत अभिषेक, पूजा, हवन, जिनबिम्ब प्रतिष्ठा का महत्त्व, प्रतिष्ठाकारक के लक्षण, प्रतिष्ठाचार्य के लक्षण, प्रतिष्ठाफल, मदिरनिर्माणविधि, प्रतिमानिर्माणविधि, मुहूर्तावली, यागमण्डल, पञ्चकल्याणकपूजा, बाहुबलि बिम्बप्रतिष्ठा, मानस्तम्भ प्रतिष्ठा, आचार्य, उपाध्याय, साधुबिम्बप्रतिष्ठा, चरण पादुकाप्रतिष्ठा, यंत्र प्रतिष्ठा, वेदी प्रतिष्ठा, कलशारोहण, मन्त्राधिकार, यंत्राधिकार आदि का विस्तृत विवरण है जो प्राचीन प्रतिष्ठापाठों पर आधारित है। पुस्तक का मुद्रण आकर्षक और निर्दोष है। यह पुस्तक प्रत्येक श्रद्धालु जैनों के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय और मननीय है। दिगम्बर जैन समाज में इसका सर्वत्र आदर होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं। ऐसे उपयोगी ग्रन्थ के प्रणयन और उत्तम रीति से सम्पादन के लिये लेखक और विद्वान सम्पादकगण बधाई के पात्र हैं। प्रीतविहार जैन समाज, दिल्ली ने न केवल इसके प्रकाशन का व्यय वहन किया बल्कि इसे लागत मूल्य पर उपलब्ध भी कराया है ताकि इसका अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो सके। ऐसे सुन्दर और लोकोपयोगी प्रकाशन के लिये प्रकाशक संस्था बधाई की पात्र है। हमारे पूर्वज : हमारे हितैषी, संकलक-श्री सुबोधकुमार जैन, सम्पादकश्री जुगलकिशोर जैन, प्रकाशक- जैन सिद्धान्त भवन, देवाश्रम, आरा (बिहार) ८०२३०१, प्रथम संस्करण १९९९ ई०, आकार- डिमाई, पृष्ठ १३+१३९, मूल्य २५/- रुपये। जैन धर्म-दर्शन के सामान्य अध्येताओं को जैनसिद्धान्तभास्कर नामक शोध पत्रिका तथा उसे प्रकाशित करने वाली संस्था जैनसिद्धान्तभवन की स्वल्प जानकारी तो है, परन्तु इसे स्थापित करने वाले महापुरुष कौन थे? इस वंश में कौन-कौन से प्रसिद्ध साहित्य व समाजसेवी हुए, इस बात की जानकारी मात्र इने-गिने लोगों तक ही थी और वह भी अल्प रूप में। इस पुस्तक के प्रकाशित हो जाने से न केवल जैन समाज, बल्कि जनसामान्य को भी इस संस्था के संस्थापक और उनके परिजनों से सम्बन्धित प्रामाणिक जानकारी प्राप्त हो सकेगी। इस पुस्तक के संकलक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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