________________
२०९ जैनसिद्धान्तभवन के आधारस्तम्भ बाबू निर्मलकुमार जी के सुपुत्र बाबू सुबोधकुमार जी हैं। उन्होंने अत्यन्त श्रमपूर्वक जैनसिद्धान्तभास्कर तथा अन्यत्र प्रकाशित विभिन्न लेखों को संकलित और उन्हें प्रकाशित कर एक महान् कार्य किया है। यह प्रेरणादायी पुस्तक सभी आयु व सभी वर्ग के लोगों के लिये पठनीय व मननीय है। इस पुस्तक की यह विशेषता है कि इसे पढ़ने के पश्चात् पाठक के मन में स्वत: यह प्रेरणा उठने लगती है कि वह ऐसी अनुपम संस्था का एक बार अवश्य दर्शन कर अपने जीवन को कृतार्थ करे। ऐसे प्रेरणादायी पुस्तक के संकलन, सम्पादन व प्रकाशन के लिये संकलनकार, सम्पादक व प्रकाशक सभी अभिनन्दनीय हैं।
___ श्री लक्ष्मणभाई भोजक अभिनन्दना सम्पाo- डॉ० जितेन्द्र बी० शाह, प्रकाशक- सम्बोधि संस्थान, 'दर्शन', राणकपुर सोसायटी के सामने, शाहीबाग, अहमदाबाद-३८७००४, प्रथम संस्करण-२००० ई०, आकार- रायल, पृष्ठ ७+१३४, मूल्य ७५/- रुपये।
प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों के लिपिविशेषज्ञ के रूप में श्री लक्ष्मणभाई भोजक द्वारा जैन समाज को दी गयी सेवाओं से हम सभी परिचित हैं। पुरातत्त्वाचार्य स्व० मुनि जिनविजय और आगमप्रभाकर स्व० मुनि पुण्यविजय जी के निकट सहयोगी के रूप में विभिन्न प्राचीन ग्रन्थ भण्डारों में उन्होंने प्राचीन ग्रन्थों के संरक्षण, सम्पादन आदि विषयक जो महान् कार्य सम्पन्न किये हैं वे आज की पीढ़ी के लिये आदर्श हैं। ऐसे महान् विद्वान् का अभिनन्दन कर सम्बोधि संस्थान स्वयं गौरवान्वित हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक में श्री लक्ष्मणभाई के सम्पर्क में आये विभिन्न आचार्यों, मुनिजनों, विद्वानों आदि के संस्मरण, शुभकामनाओं आदि को स्थान दिया गया है। यदि पुस्तक के एक भाग में आपके कुछ लेखों को भी स्थान दिया जाता तो और भी उत्तम होता। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक एवं मुद्रण निर्दोष व सुस्पष्ट है। पुस्तक में लक्ष्मणभाई के कुछ चित्र भी हैं जो इसे और भी आकर्षक बना देते हैं। एक पुरालिपि विशेषज्ञ के रूप में श्री लक्ष्मण भाई का प्रेरक जीवन परिचय प्रदान करने में यह पुस्तक पूर्णरूपेण सक्षम है। भावी पीढ़ी इससे निःसन्देह लाभान्वित होगी।
ऐसी हो जीने की शैली मुनिश्री चन्द्रप्रभ सागर, प्रकाशक- श्री जितयशा फाउन्डेशन ९सी, एस्प्लानेड रो ईस्ट, कलकत्ता, प्रकाशन वर्ष- १९९९ ई०, पृष्ठ ८+१४४, आकार- डिमाई, पक्की बाइंडिंग, मूल्य २५ रुपये।
ध्यान का विज्ञान मुनिश्री चन्द्रप्रभ सागर, प्रकाशक- उपरोक्त, प्रकाशन वर्ष १९९८ ई०, पृष्ठ ४+१०९, आकार- डिमाई, पक्की बाइंडिंग, मूल्य २० रुपये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org