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केवलज्ञान
केवलज्ञान ज्ञान की विशुद्धतम अवस्था है। इस ज्ञान के उत्पन्न होते ही समस्त क्षायोपशमिक ज्ञान विलीन हो जाते हैं, क्योंकि मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय के क्षय से कैवल्य प्रकट होता है । केवलज्ञान की प्राप्ति होते ही पूर्व के सभी छोटे-बड़े ज्ञान नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि कैवल्य के अतिरिक्त बाकी सभी ज्ञान अपूर्ण होते हैं। अत: पूर्णता की प्राप्ति होते ही अपूर्णता समाप्त हो जाती है । मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यवज्ञान ज्ञानावरण के क्षयोपशम से होते हैं इसलिए क्षायोपशमिक हैं और केवलज्ञान ज्ञानावरण के सर्वथा क्षय से उत्पन्न होता है इसलिए वह क्षायिक है। क्षायोपशमिक ज्ञान का विषय मूर्त द्रव्य होता है जबकि क्षायिक ज्ञान का विषय मूर्त और अमूर्त दोनों द्रव्य होता है । नन्दी में कहा भी गया हैजो ज्ञान सर्वद्रव्य, सर्वक्षेत्र, सर्वकाल और सर्वभाव को जानता और देखता है, वह केवलज्ञान है । नन्दी चूर्णि के अनुसार — जो मूर्त और अमूर्त सभी द्रव्यों को सर्वथा, सर्वत्र और सर्वकाल में जानता और देखता है, वह केवलज्ञान है । ७२ इन सबसे अलग आचार्य कुन्दकुन्द केवलज्ञान को परिभाषित किया है। उनके अनुसार व्यवहारनय से केवली भगवान् सबको जानते और देखते हैं तथा निश्चयनय से केवली अपनी आत्मा को जानते और देखते हैं । ३ जैन दर्शन की यह भी मान्यता है कि किसी भी आत्मा में एक साथ एक, किसी में दो, किसी में तीन और किसी में चार ज्ञान होता है, पर पाँचों ज्ञान किसी में एक साथ नहीं होता। जब एक ज्ञान होता है तो केवलज्ञान ही होता है। आत्मा में जब दो ज्ञान होते हैं तो मति और श्रुत होते हैं, क्योंकि दोनों एक साथ ही रहते हैं। दोनों एक-दूसरे के सहचरी हैं। शेष तीनों ज्ञान एक-दूसरे के बिना हो सकते हैं। आत्मा में जब तीन ज्ञान होते हैं तो मति श्रुत के साथ अवधि या मनःपर्यवज्ञान होते हैं। केवलज्ञान के साथ अन्य कोई ज्ञान नहीं होता ।
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वली के लिए सर्वज्ञ शब्द का भी प्रयोग देखा जाता है । सर्वज्ञ का अर्थ होता है - भूत, वर्तमान और भविष्य को जानने वाला । सर्वज्ञ शब्द 'सर्व' से बना है । 'सर्व' की व्याख्या प्रत्येक दर्शन अपने-अपने अनुरूप करता है। नैयायिक-वैशेषिक ईश्वरवादी हैं, इसलिए वे ईश्वर को पर्वज्ञ मानते हैं । वेदान्तियों के अनुसार ब्रह्म ही एकमात्र सर्वज्ञ हो सकता है। इस सम्बन्ध में पं० सुखलाल जी के इस कथन से यह बात और स्पष्ट हो जाती है- "न्याय-वैशेषिक दर्शन जब सर्वविषयक साक्षात्कार का वर्णन करता है तब वह 'सर्व' शब्द से परम्परा में प्रसिद्ध द्रव्य, गुण आदि सातों पदार्थों को सम्पूर्ण भाव से लेता है। सा योग जब सर्वविषयक साक्षात्कार करता है तब वह अपनी परम्परा में प्रसिद्ध प्रकृति-पुरुष आदि पच्चीस तत्त्वों के पूर्ण साक्षात्कार की बात कहता है। बौद्ध दर्शन पञ्चस्कन्धों को सम्पूर्ण भाव से लेता है। वेदान्त दर्शन 'सर्व' शब्द से अपनी परम्परा में पारमार्थिक रूप से प्रसिद्ध एकमात्र पूर्ण ब्रह्म को ही लेता
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