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यश, काम, शक्ति, सम्मान आदि की आकांक्षा रहती है जिसे वह बड़े संघर्षों का सामना कर पूरा कर पाता है। इस पूर्ति में यदि उसके साधन विशुद्ध न हों तो उसका सारा पारिवारिक और सामाजिक परिवेश विश्रृंखलित हो जाता है, छल-कपट से पारिवारिक सदस्यों में पारस्परिक अविश्वास और सन्देह घर कर जाता है, नैतिक पर्यावरण दूषित हो जाता है और सहयोग तथा सद्भाव के निर्झर सूख जाते हैं।
इस टूटन से बचने के लिए आचार्यों ने एक नैतिक संहिता का रेखाचित्र खींचा है और उसे विविध सुन्दर भावों के रंगों से चित्रित किया है। यह चित्रण निश्चित ही बड़ा प्रभावक और आकर्षक है। इसमें सारी कलाओं और दर्शनों ने अपने मनोहारी चित्र दिये हैं। सारा साहित्य ऐसे वर्णनों से भरा पड़ा है। आध्यात्मिक और भक्ति रस ने उसे निर्वाणरूप साध्य तक पहुँचाने में पूर्ण अवदान दिया है।
इसी भूमिका के आधार पर पूज्य आचार्यश्री राजयशसूरीश्वर जी म.सा. के पावन सानिध्य में यह संगोष्ठी हो रही है। आप श्री प्रसिद्ध जैनाचार्य हैं और अनेकान्त-समन्वयवाद के सम्पोषक भी।
इसी पुनीत अवसर पर श्री बनारस पार्श्वनाथ जीर्णोद्धार ट्रस्ट द्वारा निर्मित श्वेताम्बर पार्श्वनाथ जैन मन्दिर की प्राणप्रतिष्ठा के सन्दर्भ में श्री बनारस पार्श्वनाथ जीर्णोद्धार ट्रस्ट
और पार्श्वनाथ विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में आपश्री के सान्निध्य में २३ विद्वानों का सम्मान किया जा रहा है। आदर्श परिवार की संकल्पना को प्रचारित-प्रसारित करने में आपश्री का महत्त्वपूर्ण अवदान रहा है। एक बार पुनः आप सभी का स्वागत हम समवेत रूप में कर रहे हैं और अपनी विषय-प्रस्तुति को मुनिवर के शब्दों के साथ विराम दे रहे हैं।
फिजूल पांव घिसाने से फायदा क्या
अगर शौके-बयाबों है तो घर में पैदाकर । मिटा दो खुद को इतना कि रहे न कुछ निशां बाकी अगर पाना सनम को है, खुदी से हाथ धो बैठो।।
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