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को भंग का प्रमाण कहते हैं। (गोम्मटसार, कर्मकाण्ड ३७३, ३९१, ३९२। (-प्रधान सम्पादक) ति सुद्धि, लिंग ३, लक्खण ५, दूषण ५, भूषण ५, पभावगा ८ गागा ६। सद्दहण ४, जयण ६, भावण ६, ठाण ६, विणय १०, गुरुई गुणी ईयं।। २४।। ____ तीन शुद्धि, तीन लिंग, पाँच लक्षण, पाँच दोष, पांच भूषण, आठ प्रभावना, छ: आगार, चार श्रद्धान, छह यतन, छह भावना, छह स्थान, दस विनय- इस तरह सम्यक्त्व के गुण हैं।
वित्थारं तुह समए सया, सरताण भव्व जीवाणं।
सामी य तुहप्पसाया, हवेउ सम्मत्त संपत्ती।। २५।। हे स्वामी! आपके (कहे अनुसार) शास्त्रों में जो सम्यक्त्व का विस्तार है, वह भव्य जीवों का कल्याण करने वाला है। अत: हे प्रभु! आपके प्रसाद (कृपा, आशीर्वाद) से सम्यक्त्व रूपी सम्पत्ति हमारे पास हो। अर्थात् मुझे ऐसे सम्यक्त्व की प्राप्ति हो।
'इति श्री सम्यक्त्व पच्चीसी संपूर्णम् लिख्यत्तं जेट्ठी, अविगत ३, संवत् १७९६ वर्षे आशो(ज) मासे, कृष्ण पक्षे, तिथौ ३, आदितवारे (रविवार) अकबराबाद स्थाने लिप्यकृत।। ।। गुजराती टिप्पणी १. जिम सम्यकत्वनउ सरूप परूप्पउ श्री महावीर देवइ ताम कहिस्यउ तेहनइ स्तुत
करस्पुंस सम्यकत्व सुद्धिनइ कातइ। हे भगवान्। अनाद्य आद्यनधी अंतपुण नव्दी, च्यार गति संसार रूप अटवी नइ विषइ, मोहादिक कर्म कर्मनी मोटी थिति छइ, विपाक कर्मनइ वसइ भ्रमइ आत्मा। पल्लनइ असंख्यातभइ भग्गउण इक्कइ, कोडाकोडी सागरोपम स्थितिना माहि थी। तिहा गोविघ महावज्र भारी राग द्वेष रूपणी गांठि ना परिणाम अणभेदत गांठि जीव नइ वो हा हा अहो आचर्य।। पंथी नइ दृष्टांतइ जिम पंथी पथे भूलो थकउ वली मात्र या मइवली भूलइ, तव कीडीने ना ल्याइ, कोई जीव व्रजाप्ता सभी पंचेन्द्री भव्य जीव अर्द्धपुदगली
प्रावर्तन से सेस संसार माहि तेह वा कर्मनइ। ७. विस्तार के लिए देखिए, आचार्य हरिभद्रसूरि कृत सम्यक्त्वसप्तति नामक ग्रन्थ.
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